» पूजा विधि में एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या नहीं लेनी चाहिये; क्योंकि वह कन्या गन्ध और भोग आदि पदार्थों के स्वाद से बिलकुल अनभिज्ञ रहती है। पूजन योग्य कुमारी कन्या वह है, जो दो वर्ष की हो चुकी हो। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या रोहिणी, छः वर्ष की कन्या कालिका, सात वर्ष की कन्या चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा, दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। इससे उपर की अवस्था वाली कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए।
सरलार्थ » जो कन्या किसी अंग से हीन हो, कोढ़ तथा घाव युक्त हो, और जो विशाल कुल में उत्पन्न हुई हो – ऐसी कन्या का पूजा में परित्याग कर देना चाहिए। जन्म से अन्धी, तिरछी नजर से देखने वाली, कानी, कुरुप, बहुत रोमवाली, रोगी तथा रजस्वला कन्या का पूजा में परित्याग करदेना चाहिए। अत्यन्त दुर्बल, समय से पूर्व ही गर्भ से उत्पन्न, विधवा स्त्री से उत्पन्न तथा कन्या से उत्पन्न ये सभी कन्याए पूजा आदि सभी कार्यो में सर्वथा त्याज्य है।
कामनार्थ कन्या पूजन…
ब्राह्मणी सर्वकार्येषु जयार्थे नृपवंशजा ।
लाभार्थे वैश्यवंशोत्था मता वा शूद्रवंशजा ।।
श्रीमद्देवीभागवतजी – ३/२७/५
सरलार्थ » समस्त कार्यो की सिद्धि के लिये ब्राह्मणकी कन्या, विजय-प्राप्ति के लिये राज वंश में उत्पन्न कन्या तथा धन-लाभ के लिये वैश्य वंश अथवा शूद्र वंश में उत्पन्न कन्या पूजन के योग्य मानी गयी है।