सर्वपितृ अमावस्या पर पूर्वजों की तृप्ति के लिए ना छोड़े हैं तर्पण का अवसर : पं. अमित भारद्वाज
2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के दिन अपने समस्त पूर्वजों की तृप्ति हेतु तर्पण अर्थात जलदान अवश्य करें। जिन लोगों ने पितृपक्ष में प्रतिदिन को ग्रास निकालने के बाद तथा श्राद्ध की तिथि को ब्राह्मण को भोजन करने के उपरांत तर्पण नहीं किया हो वह अवश्य अमावस्या को तर्पण करें क्योंकि बिना तर्पण की श्राद्ध की पूर्णता नहीं होती। वर्तमान में देखा गया है कि गाय व कुत्ते ग्रास नहीं खा रहे हैं केवल सुनकर छोड़ देते हैं, कौए आकाश में दिखाई नहीं दे रहे हैं, ऐसे में तर्पण में प्रयुक्त पदार्थ वायु रूप में प्रविष्ट होकर हव्य के रूप में पितरों को प्राप्त होते हैं । जिससे पितृ संतुष्ट होते हैं। सबसे पहले देव तर्पण, ऋषि तर्पण तत्पश्चात पितृ तर्पण का विधान है। किसी आचार्य के निर्देशन में पवित्र नदी सरोवर पर तर्पण अवश्य करें । यदि नदी या सरोवर निकट न हो तो किसी बगीचे, कुएं के निकट या घर पर ही गोग्रास निकालकर तथा ब्राह्मण को भोजन कर कर तर्पण अवश्य करें