ज्योतिषाचार्य श्री भारद्वाज के मुखारविंद से देवभूमि ऋषिकेश में गंगा किनारे परमार्थ आआश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का हुआ समापन,
कथा में शामिल हुए देश के प्रसिद्ध संत श्री चिदानन्द जी महाराज
क्षेत्र के 150 से अधिक श्रद्धालुओं ने किया कथा का श्रवण, कथा के अंतिम दिन श्री भरद्वाज ने कहा – प्रेम के मार्ग पर चलने से आसान हो जाता है हर सफर
सुनील माहेश्वरी/ रिंगनोद।
रोते हुए को हँसा देना और रोते हुए के आंसू पोछ देना ही आपका भजन है, भागवत है और गंगा स्नान हैं। कुछ नही साथ जाना है सिवाय नेकी के, प्रेम के मार्ग पर चलने से हर सफर आसान हो जाता है, उक्त उद्गार प.पू. गुरुदेव ज्योतिषाचार्य श्री पुरुषोत्तम जी भारद्वाज ने देवभूमि ऋषिकेश में पवित्र गंगा नदी के किनारे परमार्थ आश्रम में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के अंतिम दिन दिया।
भक्तों को अंतिम दिन कथा का श्रवण करवाते हुए श्री भारद्वाज ने कहा कि बीते 7 दिनों से शांत वातावरण में आपको मां गंगा के किनारे बैठकर कथा का श्रवण का शोभाग्य प्राप्त हुआ है, यहां यह संकल्प लेकर जाए कि अब हम प्रतिदिन नाम सुमिरन करेंगे क्योकि ददुःख को अगर सुख में परिवर्तित करना है तो उसके लिए सुंदर और सरल साधन है राम नाम जप करना, श्री कृष्ण नाम जप करना।
क्षेत्र के 150 से अधिक भक्तों ने सुनी कथा – पांच धाम एक मुकाम श्री माताजी मंदिर के शास्त्री हेमंत भारद्वाज ने बताया कि 22 से 28 सितंबर तक देवभूमि ऋषिकेश में गंगा नदी के किनारे स्थित परमार्थ आश्रम में श्रीमद भागवत कथा सप्ताह का आयोजन प.पू. गुरुदेव ज्योतुषाचार्य श्री पुरुषोत्तम जी भारद्वाज के मुखारविंद से हुआ। कथा का श्रवण करने राजगढ़ क्षेत्र के 150 से अधिक श्रद्धालु देवभूमि ऋषिकेश पहुंचे थे। कथा के बाद प्रतिदिन विभिन्न धार्मिक आयोजन भी हुए। जिनमें श्रद्धालुओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।
स्वामी चिदानन्द जी का मिला सानिध्य, राजगढ़ आने का दिया निमंत्रण –
माताजी मंदिर के शास्त्री कृष्णा भारद्वाज ने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह में परमार्थ आश्रम के प्रमुख व आध्यात्मिक संत स्वामी श्री चिदानन्दजी सरस्वती महाराज का भी क्षेत्र के भक्तों को सानिध्य मिला। स्वामी श्री चिदानन्द जी ने कथा श्रवण करने पहुंचे श्रद्धालुओं से भेंट कर सभी से सदमार्ग पर चलने का आव्हान किया। इस दौरान प.पू. गुरुदेव श्री पुरुषोत्तम जी भारद्वाज के सानिध्य में सभी श्रद्धालुओं ने स्वामी श्री चिदानन्द जी को राजगढ़ आने का निमंत्रण दिया। जिस पर उन्होंने निमंत्रण स्वीकार करते हुए जल्द ही राजगढ़ आने की मंशा व्यक्त की।