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गोंडी भाषा के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए बस्तरिया वट्टी दादी का अनुकरणीय पहल।

विशेष संवाददाता राजेन्द्र मंण्डावी                                                                                                 गोंडी भाषा के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए बस्तरिया वट्टी दादी का अनुकरणीय पहल।

कांकेर   भाषा ही वो तिजोरी है, जिसमें उसके मालिक की संस्कृति व इतिहास की पूंजी सुरक्षित रखी होती है, इसलिए आधुनिक मनुष्य जिसे जागरूक कहा जाता है, वह अपने भाषा की सुरक्षा व विस्तार के लिए इतना सजग बन गया है, क्योंकि उसे पता है कि मातृभाषा अगर लुप्त हुई, तो अंततः उसकी पहचान भी खत्म हो जाएगी।

दुनिया में करोड़ों वर्ष पूर्व ट्राईएसिक पिरियड में धरती के ध्रुवों का विभाजन के समय दक्षिणाखंड अर्थात गोण्डवाना लैंड में पांच महाद्वीप- 1. एशिया महाद्वीप 2. दक्षिण अमेरिका 3. अफ्रीका महाद्वीप 4. आस्ट्रेलिया महाद्वीप 5. अंटार्कटिका महाद्वीप बने। इसके करोड़ों वर्षों के बाद कालांतर में कपि से मानव का विकास क्रम हुआ फिर मानव का विकास क्रम आगे चलकर होमोसेपियंस अर्थात विवेकी जीव या आधुनिक मानव के रूप में विकसित हुआ।

हजारों वर्षों पूर्व कोयतोरों की सभ्यता का विकास क्रम में अपनी मातृभाषा, कबिलाई गण्ड व्यवस्था, नार्र गण्ड व्यवस्था, कोट गण्ड व्यवस्था, कुल गण्ड (टोटेमिक) व्यवस्था एवं सिन्धु घाटी सभ्यता का उन्नत विकास हुआ। गोंडवाना लैंड की सबसे प्राचीन भाषा प्राग्द्रविड़ियन गोंडी भाषा में विवेकी जीव को गोण्ड (गो+अण्ड) कहा जाता था।

 

गोंडवाना लैंड बहुत बड़ा भूभाग है, इस भूभाग में गोण्ड लोगों की गोंडी भाषा बोलने वालों की बाहुलता के कारण स्वीडन के वैज्ञानिक कार्लवान लिने (1707 – 1778 ईस्वी) ने गोंडवाना लैंड का नामकरण किया। गोंडवाना लैंड की सबसे प्राचीन भाषा गोंडी विलुप्त के कगार पर है।

 

दिनांक 18.09.2024 को दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के अनुसार, गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लुप्तप्राय भाषा विभाग के अनुसार गोंडी भाषा संकट में है। दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा गोंडी विलुप्त के कगार पर है और इस भाषा के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए गोंडियन समुदाय गंभीर नहीं हैं।

 

भाषा में अपना एक इतिहास होता है, अपना जीवनदर्शन होता है, भाषा विलुप्त होती है, तो दुनिया में उस भाषा को बोलने वालों की पूरी पहचान मिट जाती है। भाषा संस्कृति की वाहिका है हमारी संस्कृति एवं रूढ़ि प्रथा को ढोती है। गोंडी भाषा में बात करना मतलब अपनी जीवन मूल्य को बचाना है।

 

इसलिए गोंडवाना लैंड की गोंडी भाषा, संस्कृति एवं रूढ़ि प्रथा के संवर्धन एवं संरक्षण करने के लिए जागरुकता करना जरूरी है। इसी उद्देश्य से प्रकृति महापर्व नवा खानी के बाद मनाई जानी वाली गायता जोहारनी से दक्षिण ब्लॉक कांकेर (छ.ग.) के 40 गांव में गोंडी भाषा की संवर्धन एवं संरक्षण के लिए गोंडी क्लास शुरू करने हेतु सामाजिक सियानों के संकल्प, मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद से मैंने नि:शुल्क गोंडी किताब- कोयामर्री गोंडी पल्लो करियाट वितरण किया गया है। ताकि सियानों के मार्गदर्शन में 40 गांव में गोंडी क्लास अनवरत चलता रहे।

 

इसी तरह छत्तीसगढ़ राज्य के पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के उपखंड क्षेत्र या ब्लॉक जहां पर प्रत्येक सप्ताह सामाजिक पदाधिकारियों का सामाजिक चर्चा एवं चिंतन बैठक होता है। ऐसे उपखंड क्षेत्र या ब्लॉक का अवलोकन उपरांत किसी भी एक उपखंड क्षेत्र या ब्लॉक को चयनित किया जाएगा और उस चयनित एक उपखंड क्षेत्र या ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक गांवों में गोंडी क्लास शुरू करने के लिए एक – एक गोंडी किताब- कोयामर्री गोंडी पल्लो करियाट, बस्तरिया वट्टी दादी, नार्र -हिचाड़, जिला -कोंडनार्र (छ.ग.) की ओर से नि: शुल्क प्रदाय की जाएगा। इस तरह से राज्य के पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में अलग-अलग उपखंड क्षेत्र या ब्लॉक में ऐसा अवसर वर्ष में केवल चार बार मिलेगा और यह सिलसिला प्रति वर्ष अनवरत चलता रहेगा। आप सभी लोगों का सहयोग एवं स्नेह सदैव मिलता रहे। सादर सेवा जोहार…🙏

 

✍️✍️✍️बस्तरिया वट्टी दादी, नार्र- हिचाड़, मुरनार्र, कोंडानार्र (छ.ग.)

संपर्क सूत्र- 8963955274 (वाट्सएप)

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