: उत्तराखंड के बागेश्वर में सुंदरढुंगा ग्लेशियर पर बने मंदिर विवाद पर मंदिर समिति ने सफाई दी है.
सफाई के बाद मंदिर के निर्माण और पवित्र कुंड में स्नान विवाद की धुंधली तस्वीर साफ हो गई है. स्थानीय प्रशासन ने भी मामला स्पष्ट किया है.
रिपोर्ट धीरज खण्डूडी
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित सुंदरढुंगा ग्लेशियर में क्या अवैध रूप से मंदिर का निर्माण किया गया? क्या किसी को इस मंदिर निर्माण की कोई खबर नहीं लगी? कुछ ऐसे ही सवाल तीन दिन से उत्तराखंड में चर्चा का विषय बने हुए हैं. इन सवालों को लेकर तमाम चर्चाएं की जा रही हैं. मामले ने जोर पकड़ा तो स्थानीय प्रशासन को पूरे मामले पर जांच के आदेश देने पड़े. जिसके बाद अब तस्वीर साफ होती जा रही है.
ये है विवाद: बागेश्वर के सुंदरढुंगा ग्लेशियर में स्थित देवी कुंड के पास बने मंदिर निर्माण का मुद्दा 16 जुलाई को अचानक सुर्खियों में आया. यह क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 16 हजार फीट की ऊंचाई पर है. यहां तक पहुंचने के लिए लगभग 30 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. हालांकि, यह कोई नई जगह नहीं है. सालों से यहां पर्वतारोहियों का दल ट्रेकिंग के लिए आता रहता है. बताया जाता है कि बागेश्वर के लगभग 10 से 12 गांव के लोग इस स्थान को बेहद पवित्र मानते हैं.
क्यों पैदा हुआ विवाद: इस स्थान को लेकर विवाद तब उत्पन हुआ जब कुछ लोगों ने ग्लेशियर पर बने मंदिर की तस्वीरों को सोशल मीडिया पर शेयर करना शुरू किया. धीरे-धीरे मामला बढ़ा तो लोगों ने आवाज उठानी शुरू की. सवाल उठा कि आखिरकार इतने ऊंचाई वाले इलाके और प्रतिबंधित क्षेत्र में निर्माण कैसे हो गया? आनन-फानन में जिलाधिकारी अनुराधा पाल ने भी इस पूरे मामले की जांच बैठा दी.
लोगों का गुस्सा तब और भड़क गया जब एक संत के द्वारा मंदिर के ही पास बने देवी कुंड में स्नान का वीडियो देखा गया. लेकिन अब इन सभी विवाद को लेकर न केवल संत ने माफी मांगी है बल्कि इसके अलावा मंदिर निर्माण कब, कैसे, क्यों और किसने कराया, ये भी साफ हो गया है.
पहले भी स्थान रहा चर्चा में: यह स्थान इतना खूबसूरत और पवित्र होने के साथ-साथ अलौकिक भी है. पर्वतारोही अक्सर यहां ट्रेकिंग के लिए आते हैं. हालांकि कई बार यह ट्रेक लोगों के लिए खतरा भी बन चुका है. साल 2022 में पश्चिम बंगाल के चार ट्रेकर भी इस ग्लेशियर में बर्फीले तूफान के कारण मौत हो गई थी. इससे पहले भी यहां कई बार इसी तरह के हादसे हो चुके हैं.
कैसे और किसने बनवाया मंदिर: दरअसल, मंदिर के निर्माण की जानकारी स्थानीय प्रशासन भी है. लेकिन जनविरोध को देखते हुए प्रशासन ने फौरी तौर पर जांच करवाने और सभी पहलुओं को गंभीरता से रखने का निर्देश दिया है. इस मंदिर का निर्माण दरअसल बागेश्वर जिले के ही ग्रामीणों ने करवाया है. ऐसा नहीं है कि यहां पर मंदिर अचानक बना है, बल्कि सालों से इस स्थान पर एक मंदिर हुआ करता था. हालांकि, उसका आकार इतना बड़ा नहीं था. छोटे से मंदिर होने के साथ ही यहां पर हर साल स्थानीय लोग और यहां आने वाले पर्वतारोहियों का रुकना होता था. लेकिन लगभग 4 साल पहले अत्यधिक बारिश, तूफान और ग्लेशियर टूटने के कारण मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था.
मंदिर तक पहुंचने के लिए लोगों को 30 किमी पैदल चलना पड़ता था. ऐसे में मंदिर का जीर्णोद्धार करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए ग्रामीणों ने एक समिति बनाई और समिति ने तय किया कि माता के मंदिर का निर्माण करवाया जाएगा. हालांकि, इन सब में महत्वपूर्ण भूमिका रही योगी चैतन्य आकाश की. योगी ने स्थानीय निवासियों से कहा कि उन्हें लगभग 3 साल पहले सपने में आकर मां ने दर्शन दिए थे. चैतन्य आकाश ने ग्रामीणों से कहा था कि मंदिर का निर्माण बेहद जरूरी है. ग्रामीणों को जब योगी चैतन्य आकाश ने पूरी बात बताई तो ग्रामीण भी योगी के साथ खड़े हो गए. आसपास के लगभग तीन से चार गांव ने यह निर्णय लिया कि एक समिति बनाकर इस मंदिर का निर्माण करवाया जाएगा.