सोलन से पवन कुमार सिंघ् की रिपोर्ट
हिमाचल प्रदेश में जहां कई शक्ति स्थल है तो वहां कुछ अभी उभरने बाकी है l पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव शक्ति का क्षत-विक्षत शव अपने कंधे पर उठाकर के कैलाश जा रहे थे, तो जहां जहां सती के अंग गिरे वहां वहां वर्तमान में शक्ति स्थल बन गए, कुछ स्थल प्रसिद्ध हो गए, कुछ अभी विश्व के मानचित्र पर उभरने बाकी है l ऐसा ही उभरता हुआ शक्ति स्थल *माँ चंडी देवी का मंदिर* है l *माँ चंडी* का मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन , तहसील कसौली क्षेत्र एवं प्राचीन पट्टा *महलोग रियासत* में अपनी ऐतिहासिक एवं धार्मिक विशेषता को संजोए हुए गांव चंडी में स्थित है l यदि *पट्टा महलोग रियासत* के नाम की भनक कान में पड़े तो *
माँ चंडी देवी* का नक्शा हमारे मानस पटल पर ऊभर जाता है l चारों ओर से *पर्वतीय शैल मालाओं की हरी* *भरी घाटियों एवं उत्तंग शिखरो* से घिरा हुआ चंडी गांव अपने आप में रमणीय रूप से वर्तमान मे धार्मिक आस्था का केंद्र बन गया है l आज चंडी *मंदिर विकास समिति* की उचित देखरेख में विकास एवं आस्था के नए मील के पत्थर स्थापित कर रहा है lवैसे चंडी *गांव का नामकरण भी माँ चंडी* देवी के नाम से हुआ है l पौराणिक मिथकों के आधार पर *माँ चंडी इस गांव में पिंडी रूप में* प्रकट हुई थी l कहते हैं कि *एक स्थानीय किसान* जब अपने खेत में हल जोत रहा था तो उस दौरान *हल की फाली* के अगले भाग में खून लगा देख कर के वह किसान बहुत अचंभित एवं भयभीत हो गया कि मेरे हल के नुकीले भाग अर्थात फाली से क्या जीव मर गया होगा जो यह खून लगा है l जब वह इस दृश्य को देख कर के बहुत भयभीत एवं आश्चर्यचकित हुआ तो उसने अपनी नजर इधर उधर खेत में घूमाई तो उसने पाया कि यह *खून एक पत्थर* *नुमा पिंडी* के ऊपरी हिस्से से बह रहा है l इस *दैविक दृश्य को* देख कर के वह किसान बहुत आश्चर्यचकित एवं अचंभित रह गया lउसके उपरांत उस किसान ने अपने घर के सदस्यों एवं स्थानीय गांव के लोगों के साथ इस दैविक घटना के विषय पर चर्चा की l इस देविक घटना के उपरांत एक रात को उस *किसान को स्वपन में माँ काली* अर्थात चंडी का साक्षात्कार हुआ l माँ चंडी ने उस किसान से स्वपन में कहा कि मुझे पिंडी रूप में अपने गांव में स्थापित कर , नित्य प्रति इस की पूजा करें l इससे उसका एवं सारे चंडी क्षेत्र का भविष्य में कल्याण होगा l इस के बाद गांव के लोगों ने *माँ चंडी को प्रति स्वरूप उस* *पत्थर नुमा पिंडी को चौकी बना* करके उस पर विधिवत पूजन एवं मंत्रोच्चारण के साथ उसको स्थापित किया l यदि हम इतिहास के पन्ने को खोल कर देखें तो पाते हैं की माँ चंडी देवी का मंदिर पट्टा महलोग रियासत के *तत्कालिक मैनेजर मियां भवानी* *सिंह ने* मां चंडी के प्रति अपनी पूर्ण आस्था एवं अटूट श्रद्धा के चलते सन *1910 में इस* की स्थापना की थी lआज माँ चंडी देवी उभरता हुआ धार्मिक एवं निष्ठा का केंद्र बन गया है l इस मंदिर की पवित्रता और धार्मिक निष्ठा के चलते इस मंदिर का ओर भी महत्व बढ़ जाता है क्योंकि यहां से बहुत ही *नजदीक गुरुजोहड* *जी महाराज जी का* पवित्र स्थान स्थित है l जहां पर हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु एवं सेवक अपनी अटूट आस्था के चलते आते रहते हैं l *इस वर्ष तो जोहड़* *जी महाराज में विशाल मेला* लग रहा हैl जिसमें पर प्रदेश, देश एवं विदेश के बहुत से श्रद्धालु *जोहड़ जी* *महाराज जी के मेले* को जाते समय अवश्य रास्ते में मां चंडी देवी के मंदिर के प्रांगण में भी अपनी अटूट आस्था केचलते मां के मंदिर मे मत्था टेकते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते है l इस जोहड़ जीके मेलों के दौरान दूर से आए हुए श्रद्धालुओं एवं *संगतो की सेवार्थ मंदिर समिति* एवं *स्थानीय लोगों द्वारा* उस दौरान प्रतिदिन भंडारे का आयोजन भी किया जाता है l यह पवित्र एवं धार्मिक स्थल सोलन से 45 किलोमीटर , सुबाथू से 21 किलोमीटर , कुनिहार से 18, हरिपुर गुरुद्वारे से केवल 12 किलोमीटर दूरी पर एवं नालागढ़ से 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित है l इस धार्मिक स्थल से कसौली, शिमला एवं हिमाचल के बर्फ से ढकी हुई श्रृंखला का नजारा देखने को बनता है l वैसे हिमाचल के सभी शक्ति स्थल पर वर्ष भर मेले लगते हैं *लेकिन चंडी मेले* की अपनी विशेष महत्ता है lयह मेला आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे बड़ा मेला है l स्थानीय लोग उत्सुकता एवं बेसब्री से इस मेले का वर्ष भर इंतजार करते हैं l *इसे चंडी की जातर के* नाम से भी जाना जाता है l यह मेला *पिछले 100 वर्षों से लगता आ* रहा है lयह जिला स्तरीय मेला हर वर्ष *15 एवं16 जेस्ठ* *अर्थात 29,, 30मई को मां* चंडी देवी मंदिर के परिसर के आसपास लगता है l इस *जिला* *स्तरीय मेले में* लोग बहुत दूर-दूर से अपनी पारंपरिक पोशाक पहनकर के मनोकामनाएं पूर्ण होने पर अपनी मनोतियां लेकर के पहुंचते हैं lवैसे भी मां चंडी देवी स्थानीय क्षेत्र के लोगों की *कुलदेवी* भी है , जिससे लोगों की *माँ चंडी के प्रति अगाध* *श्रद्धा एवं अटूट आस्था है* l इस चंडी मेले का आकर्षण इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि लोग तब तक रवि की फसल भी काट चुके होते हैं l वे सभी अपनी नव फसल का पहला हिस्सा मां के चरणों में समर्पित मां चंडी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं l हर वर्ष नवरात्रों में इस मंदिर की भव्यता और बढ़ जाती है l इस दौरान यहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु एवं भक्तजन आते हैं *l चंडी मंदिर* *विकास* *समिति के* उचित देखरेख एवं मार्गदर्शन में आज इस मंदिर का *जीर्णोद्धार कर* इस को भव्य रूप प्रदान किया गया है l माँ चंडी देवी मंदिर में विद्यमान गुरु की मंजी एवं चंडी मंदिर से कुछ ही दूर प्राचीन *भुमलेश्वर* *महादेव का प्राचीन मंदिर *एवं* **गोयला के छमकड़ी का* *शिव मंदिर भी* स्थानीय ऐतिहासिक एवं धार्मिक विरासत को चार चांद लगा देता है l माँ *चंडी देवी का मंदिर प्राचीन* *सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत* *को संजोए हुए हैं,* पर इसके उपरांत भी आज यह *धार्मिक स्थल प्रचार प्रसार* की छाया से कोसों दूर है, ओर वह दिन भी दूर नहीं जब हिमाचल प्रदेश की पर्यटन विभाग की पैनी दृष्टि इस धार्मिक स्थान पर पड़ेगी और यह *धार्मिक स्थल विश्व मानचित्र* पर एक महत्वपूर्ण एवं शक्ति पीठ के रूप मेउभर कर के सभी श्रद्धालुओं एवं भक्तजनों को अपनी तरफ आकर्षित करेगाl