मथुरा : श्री रामलीला सभा के तत्वावधान में श्रीकृष्ण जन्मस्थान लीला मंच पर गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र की लीला का भावपूर्ण मंचन किया गया ।अपनी प्रिय पत्नी रत्ना के साथ गोस्वामी तुलसीदास वैवाहिक जीवन यापन कर रहे थे । रत्ना विवाह के बाद बहुत समय तक अपने मायेक (पीहर) नही गयी । एक दिन बद्रिका वन उनका भाई शंकर दत्त श्रावण मास में अपनी बहिन रत्ना को लिवाने आते हैं एवं गोस्वामी जी से उनको ले जाने की आज्ञा मांगते हैं कि बाल्यकाल की सभी सखियाॅ इस समय गाॅव में आयी हुई हैं, वह सभी रत्ना से मिलने को उतावली हो रही हैं, वैसे भी रत्ना बहुत समय से बद्रिका नहीं गयी हैं ।
तुलीसदास बहाना बनाते हैं कि जब से हमारा पुत्र तारापति भवान के चरणों में लीन हो गया है, तब से हमारा चित्त ठीक नहीं रहता । रत्ना के न रहने से पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाता है । शंकरदत्त कहते हैं कि अभी हाल में ही हमारी माताजी का स्वर्गवास हो गया है । यदि रत्ना इस समय भी नहीं गयी तो गाॅव वाले आपस में चबैया करेंगे ।तुलीसदास के बहाने सुनने के बाद शंकरदत्त ने उनसे भी साथ में बद्रिका वन चलने को कहा तथा अपने कक्ष में रत्ना तुलसीदास से साथ ले जाने को मना करती है । बहुत अनुग्रह करने पर तुलसीदास केवल 10 दिन के लिए बद्रिका वन भेजने को राजी हो जाते हैं तथा 11 वें दिन लौट आने की कहते हैं ।तुलसीदास बाहर अपने यजमानों के यहाॅ चले जात हैं 11वें दिन लौटने पर घर में ताला लगा देखकर पत्नी के प्रति आसक्त उफनती हुई गंगा को शव के मा/यम से पार कर सर्प को रस्सी समझ कर चढ़कर ससुराल में पत्नी के कक्ष में पहुंच जाते हैं ।
आज रत्ना के मुख से सरस्वती ने यह वाक्य कहलवाया कि –
‘‘अस्थि चर्ममय देह मम, तामें ऐसी प्रीति, जो कछु होती राम में, तौ न होति भव भीत ।
इस वाक्य से तुलसीदास के मस्तिष्क के कपाट खुल गये ।
तुलसीदास प्रतिदिन शौच के बाद बदरी के पेड़ पर बचा हुआ जल फेंक देते थे । एक दिन उस पेड़ पर रहने वाला प्रेत उनके समक्ष उतर कर बोला कि इस पेड़ पर मेरा निवास है तुरुहारे प्रतिदिन कमण्डल से डाले गये जल को पीकर मैं तुप्त हुआ हॅू । वह प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहता है तो तुलसीदास उससे प्रभु राम के दर्शन करने की अभिलाशा व्यक्त करते है ।
प्रेत ने कहा कि मैं तो तुम्हें श्रीराम के दर्शन नहीं करा कसता किन्तु एक उपाय बता सकता हूॅ । तुम जहाॅ कहीं भी श्रीराम कथा सुनने जाते हो, वहाॅ सबसे पीछे अत्यन्त ही निर्बल, दीन-दुखी, रोग से पूरित दीन नेत्रों वाला व्यक्ति दिखायी देंगा । फटे-पुराने वस्त्रों वाला वह व्यक्ति सभी श्रोताओं के बाद धीरे-धीरे उठ कर जाता है वह कोई और नहीं बल्कि पवन पुत्र हनुमानजी हैं ।यह सुन गोस्वामी जी ने कथा समाप्त होने पर हनुमन्त लाल जी के चरणों को पकड़ कर प्रणाम कर अपने असली रूप में दर्शन देने एवं प्रभु श्रीराम के दर्शन कराने का आग्रह किया ।हनुमानजी ने उनको श्रीराम के दर्शन कराने हेतु नदी के तीर पर चन्दन घिस कर रखने का सुझाव दिया । तुलसीदास श्री हनुमानजी के कथनानुसार नदी के तीर पर बैठकर प्रभु की प्रतीक्षा करने लगे । प्रभु श्रीराम, लघु भ्राता लक्ष्मण के साथ राजकुमार रूप में वहाॅ पहुॅचते हैं एवं तुलसीदास से चन्दन लगाने को कहते हैं । तुलसीदास उनके चंदन लेपन करते हैं । इस प्रकार उनको प्रभु श्रीराम के दर्शन होते हैं ।
इति ।
प्रसाद सेवा अनिल अग्रवाल, गौरव अग्रवाल प्रेस वाले द्वारा की गयी ।लीला में गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी, सभापति जयन्ती प्रसाद अग्रवाल, उपसभापति जुगलकिशोर अग्रवाल, नन्दकिशोर अग्रवाल महामन्त्री मूलचन्द गर्ग, मन्त्री प्रदीप सर्राफ पी0के0, विजय सर्राफ किरोड़ी, कोषा/यक्ष शैलेष अग्रवाल सर्राफ, आय-व्यय निरीक्षक अजय मास्टर, अजय कान्त गर्ग, रासबिहारी लोहे वाले, प्रेम सर्राफ, सौरभ बंसल, सोहन लाल शर्मा, महेश चन्द एडवोकेट, योगेन्द्र चतुर्वेदी, बाॅबी हाथी, पिन्कल वर्मा, मनीष गर्ग, बबलू अटैची, राजनारायण गौड़, राजीव शर्मा नितिन शर्मा, विष्णु शर्मा आदि प्रमुख थे ।
दिनांक 27.09.2024 शुक्रवार को शिव-पार्वती विवाह की लीला सायं 7 बजे से श्रीकृष्ण जन्मस्थान लीला मंच पर होगा।