देख रहे हैं न? पुलिसवालों का इलाज हो रहा है, अस्पताल में भर्ती हैं, थाने में छिप कर उन्हें जान बचानी पड़ी, महिला पुलिसकर्मियों तक को नहीं छोड़ा गया। थाना जल रहा है, थाना। वो थाना, जहाँ पुलिस रहती है। जिन गाड़ियों से पुलिस चलती है, धू-धू कर जल रहे हैं।
ये वही पुलिस है जिस पर हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी है। वो भी लाचार है ऐसी स्थिति आने पर। ये तो सिर्फ इस्लामी भीड़ का बल प्रदर्शन का 10% है, वो तो पूरी क्षमता और फंडिंग के साथ अभी उतरे भी नहीं हैं। नहीं-नहीं, मैं पुलिस को अयोग्य या अक्षम नहीं कह रहा, कतई नहीं, बिलकुल नहीं। मैं सामने जो दुश्मन है, जो गद्दार हैं उनकी ताकत देख रहा हूँ। क्या करेगी पुलिस, आखिर करेगी क्या? कर भी क्या सकती है? पुलिस को तो कभी न्यायालय रोक देती है, कभी सरकार बदल जाती है तो रुकना पड़ता है।
स्वयं को सशक्त किए बिना कुछ नहीं होगा। अब बात पुलिस की नहीं, हिन्दू समाज बनाम गद्दारों की है। हमें पुलिस बचाने नहीं आएगी, इतना तो आज फिर से सुनिश्चित हो गया है। इसका आभास रहना चाहिए हमें। पुलिस स्वयं की रक्षा कर ले, यही बहुत है। कई थानों की पुलिस है, पैरामिलिट्री है, दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश है – क्या हो गया? कुछ नहीं। उनकी महिलाएँ मोर्चा सँभाल लेती हैं, एक गोली तो छोड़िए डंडा चल चल गया तो सुप्रीम कोर्ट नौकरी खा जाएगा कइयों की। छल-बल में वो भारी हैं। बहुत कुछ सीखना अभी हमें।
#Uttarakhand के #Haldwani में वही हो रहा जो हरियाणा के मेवात में होता है, पश्चिम बंगाल के मालदा में होता है, बिहार के किशनगंज में होता है, कश्मीर के पुलवामा में होता है, कर्नाटक के शिवमोगा में होता है… सूची बढ़ती जाएगी, हम आत्मक्षा में विफल हुए तो मिट जाएँगे।