नई दिल्ली:- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के वीर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती का जिक्र किया. राष्ट्रपति ने कहा कि बिरसा मुंडा के योगदान को अब सही रूप में मान्यता मिल रही है. राष्ट्रपति मुर्मू ने इसके साथ ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से जुड़ी सरकार की पहल को ‘साहसपूर्ण दूरदर्शिता’ का एक प्रयास बताया और कहा कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ से सुशासन को नए आयाम दिए जा सकते हैं.
राष्ट्रपति ने 76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को राष्ट्र को संबोधित करते हुए सरकार के कई सुधारात्मक और कल्याणकारी कदमों तथा कानूनों का जिक्र किया और कहा कि हाल के दौर में औपनिवेशिक मानसिकता को बदलने के ठोस प्रयास हमें दिखाई दे रहे हैं.’ मुर्मू ने कहा, ‘वर्ष 1947 में हमने स्वाधीनता प्राप्त कर ली थी, लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता के कई अवशेष लंबे समय तक मौजूद रहे. हाल के दौर में, उस मानसिकता को बदलने के ठोस प्रयास हमें दिखाई दे रहे हैं.’
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि ऐसे प्रयासों में- भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लागू करने का निर्णय सबसे ज्यादा उल्लेखनीय है.’ उन्होंने कहा कि न्याय शास्त्र की भारतीय परंपराओं पर आधारित इन नए अधिनियमों द्वारा दंड के स्थान पर न्याय प्रदान करने की भावना को आपराधिक न्याय प्रणाली के केंद्र में रखा गया है.
राष्ट्रपति ने कहा कि देश में चुनावों को एक साथ संपन्न कराने के लिए संसद में पेश किया गया विधेयक, एक और ऐसा प्रयास है, जिसके द्वारा सुशासन को नए आयाम दिए जा सकते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘एक राष्ट्र एक चुनाव की व्यवस्था से शासन में निरंतरता को बढ़ावा मिल सकता है, नीति-निर्धारण से जुड़ी निष्क्रियता समाप्त की जा सकती है, संसाधनों के अन्यत्र खर्च हो जाने की संभावना कम हो सकती है तथा वित्तीय बोझ को कम किया जा सकता है. इनके अलावा, जन-हित में अनेक अन्य लाभ भी हो सकते हैं. ‘
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को बीते शीतकालीन सत्र के दौरान निचले सदन में पेश किया गया था और फिर इन पर विचार के लिए 39 सदस्यीय संसद की संयुक्त समिति का गठन किया गया.
संविधान के महत्व का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने पिछले 75 वर्षों में हुई प्रगति पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, ‘स्वतंत्रता के समय देश के कई हिस्से अत्यधिक गरीबी और भुखमरी का सामना कर रहे थे. हालांकि, हमने खुद पर विश्वास बनाए रखा और विकास के लिए परिस्थितियां बनाईं.’
राष्ट्रपति ने हाशिए पर पड़े समुदायों, विशेषकर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को सहायता प्रदान करने के प्रयासों का उल्लेख किया. उन्होंने महाकुंभ का उल्लेख करते हुए कहा, ‘हमारी सांस्कृतिक विरासत के साथ हमारा जुड़ाव और अधिक गहरा हुआ है. इस समय आयोजित हो रहे प्रयागराज महाकुंभ को उस समृद्ध विरासत की प्रभावी अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है.’ राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि परंपराओं और रीति-रिवाजों को संरक्षित करने तथा उनमें नई ऊर्जा का संचार करने के लिए संस्कृति के क्षेत्र में अनेक उत्साहजनक प्रयास किए जा रहे हैं.
राष्ट्रपति मुर्मू ने महात्मा गांधी के आदर्शों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत को सही दिशा में आगे बढ़ाने के लिए हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की आवश्यकता है. उन्होंने सभी देशवासियों से अपील की कि वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में अपना योगदान दें और पर्यावरण संरक्षण के लिए एकजुट हों. राष्ट्रपति ने संविधान सभा के उन महान नेताओं को याद किया जिन्होंने हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव रखी. साथ ही, उन्होंने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि भारत में महिलाओं को उस समय संविधान सभा के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर मिला, जब दुनिया के कई हिस्सों में उन्हें समानता का अधिकार नहीं था.
राष्ट्रपति मुर्मू ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’, महिलाओं को समानता का अधिकार, आर्थिक विकास सहित कई मुद्दों पर अपनी बात रखी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को देश के हित में एक दूरदर्शी उपाय बताया। उन्होंने कहा कि’एक राष्ट्र एक चुनाव’ विधेयक नीतिगत पक्षाघात को रोकने, संसाधन विभाजन को कम करने और वित्तीय बोझ को कम करने में मदद करेगा। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ योजना शासन में स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है।
औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेषों को खत्म करने की आवश्यकता
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कहा कि देश में दशकों से मौजूद औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेषों को खत्म करने के लिए सरकार के प्रयास सही दिशा में हो रहे। ब्रिटिश काल के आपराधिक कानूनों को तीन नए आधुनिक कानूनों से बदलना एक बेहतर फैसला था। उन्होंने कहा: हम उस मानसिकता को बदलने के लिए ठोस प्रयास देख रहे हैं… इस तरह के बड़े सुधारों के लिए दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में केवल दंड देने के बजाय न्याय प्रदान करने को प्राथमिकता है। इन तीनों कानूनों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को बेहतर ढंग से निपटने की क्षमता है।
आर्थिक विकास को भी सराहा
राष्ट्रपति ने हाल के वर्षों में लगातार उच्च आर्थिक विकास दर की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि देश के उच्च आर्थिक विकास दर ने रोजगार के अवसर पैदा किए हैं, किसानों और मजदूरों की आय में वृद्धि की है और कई लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। सरकार ने समावेशी विकास को प्रोत्साहित किया, लोककल्याण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता ने लोगों के जीवन को बदल दिया है। नागरिकों के लिए आवास और स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंच सुनिश्चित हुई है। हाशिए पर पड़े समुदायों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों को बुनियादी सुविधा मुहैया कराकर उनको मुख्य धारा से जोड़ा गया।
महिला समानता पर बात
राष्ट्रपति ने संविधान सभा का जिक्र करते हुए महिला समानता की बात की। उन्होंने कहा कि महिलाएं हमेशा से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। उन्होंने कहा: जब दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं की समानता एक दूर का लक्ष्य थी, तब भारतीय महिलाएं राष्ट्र के भाग्य में सक्रिय रूप से शामिल थीं।
संविधान देश का एक जीवंत दस्तावेज
प्रेसिडेंट द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज के रूप में विकसित हुआ है जो भारत की सामूहिक पहचान की नींव के रूप में कार्य करता है और पिछले 75 वर्षों में राष्ट्र की प्रगति का मार्गदर्शन करता रहा है। उन्होंने कहा कि एक सुव्यवस्थित स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्र को एकजुट करने के लिए 20वीं सदी के शुरुआती स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत बड़ा योगदान दिया जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। भारत को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को फिर से खोजने में मदद करने के लिए महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर और बाबासाहेब अंबेडकर जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों को महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने कहा: न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व केवल आधुनिक अवधारणाएं नहीं हैं; वे हमेशा हमारी सभ्यतागत विरासत का अभिन्न अंग रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के भविष्य पर संदेह करने वाले गलत साबित हुए।