शिव कुमार यादव रिपोर्टर
रेवाड़ी
शिक्षा के बाजारीकरण का जिम्मेदार कौन?
रविवार को दिल्ली में आयोजित मिलेट्री स्कूल में प्रवेश के लिए हुई परीक्षा के दौरान जो दृश्य देखने को मिला वह एक चिंतनीय विषय है। जो लगभग हर परीक्षा केंद्र के बाहर देखने को मिला। प्राइवेट कोचिंग सेंटर और एकेडमी के संचालक और स्टाफ अपने विज्ञापन पत्र अभ्यर्थी के अभिभावकों को बांट रहे थे। यह दृश्य शिक्षा के बाजारीकरण की एक सच्चाई है, जो हमारे समाज में व्याप्त है। शिक्षा का बाजारीकरण कई समस्याएं पैदा करता है:
शिक्षा के बाजारीकरण की समस्याएं
1. शिक्षा की गुणवत्ता में कमी: जब शिक्षा एक व्यवसाय बन जाती है, तो शिक्षा की गुणवत्ता कम हो जाती है और छात्रों को उचित शिक्षा नहीं मिलती।
2. महंगी शिक्षा: प्राइवेट कोचिंग सेंटर और एकेडमी संचालक अपने विद्यार्थियों से महंगे शुल्क वसूलते हैं, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए शिक्षा दूर की बात हो जाती है।
3. भ्रष्टाचार: शिक्षा के बाजारीकरण में भ्रष्टाचार भी होता है, जैसे कि प्रवेश में धांधली और नकल की समस्या।
4. छात्रों का शोषण: प्राइवेट कोचिंग सेंटर और एकेडमी छात्रों को आकर्षक विज्ञापन और झूठे वादे देकर अपने संस्थान में प्रवेश के लिए प्रेरित करते हैं।
5. सरकारी शिक्षा प्रणाली की उपेक्षा: शिक्षा के बाजारीकरण के कारण सरकारी शिक्षा प्रणाली की उपेक्षा होती है, जिससे सरकारी स्कूलों की स्थिति खराब हो जाती है.
समाधान
1. सरकारी नियमन: सरकार को शिक्षा के बाजारीकरण पर नियंत्रण रखने के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए।
2. शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार: सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
3. शिक्षा की पहुंच में वृद्धि: सरकार को शिक्षा को सभी तक पहुंचाने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए, जैसे कि मुफ्त शिक्षा और छात्रवृत्ति की व्यवस्था।
4. जागरूकता अभियान: लोगों को शिक्षा के बाजारीकरण के बारे में जागरूक करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।