सवांददाता नरसीराम शर्मा बीकानेर श्रीडूंगरगढ
पंचांग का अति प्राचीन काल से ही बहुत महत्त्व माना गया है। शास्त्रों में भी पंचांग को बहुत महत्त्व दिया गया है और पंचाग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना गया है। पंचांग में सूर्योदय सूर्यास्त,चद्रोदय-चन्द्रास्त काल,तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त योगकाल,करण,सूर्य-चंद्र के राशि,चौघड़िया मुहूर्त दिए गए हैं।
🙏जय श्री गणेशाय नमः🙏
🙏जय श्री कृष्णा🙏
आज जा पंचांग
21 नवम्बर 2024
सम्वत :- 2081
मास :- मार्गशीर्ष
तिथि :- षष्ठी 05:05 पी एम
पक्ष :- कृष्ण पक्ष
नक्षत्र :- पुष्य 03:36 पी एम नक्षत्र स्वामी शनि
वार :- गुरुवार
पंचक :- नहीं
चंद्र :- कर्क
सूर्य :- वृश्चिक
अभिजीत मूहर्त :- 10:56 ए एम से 11:39 ए एम
राहुकाल :- 12:38 पी एम से 01:59 पी एम
दिशाशूल :- दक्षिण
चोघडिया, दिन
शुभ 07:05 – 08:24 शुभ
रोग 08:24 – 09:44 अशुभ
उद्वेग 09:44 – 11:03 अशुभ
चर 11:03 – 12:23 शुभ
लाभ 12:23 – 13:42 शुभ
अमृत 13:42 – 15:02 शुभ
काल 15:02 – 16:21 अशुभ
शुभ 16:21 – 17:41 शुभ
चोघडिया, रात
अमृत 17:41 – 19:21 शुभ
चर 19:21 – 21:02 शुभ
रोग 21:02 – 22:42 अशुभ
काल 22:42 – 24:23* अशुभ
लाभ 24:23* – 26:04* शुभ
उद्वेग 26:04* – 27:44* अशुभ
शुभ 27:44* – 29:25* शुभ
अमृत 29:25* – 31:05* शुभ
(*) समय आधी रात के बाद, लेकिन अगले दिन के सूर्योदय से पहले. ,
🙏आज का राशिफल🙏
मेष राशि :- आज आर्थिक समस्या का समाधान होगा।संपत्ति से संबंधित मामलों में सतर्क रहें,जल्द किसी पर विश्वास ना करें।करियर में उन्नति के नए मार्ग स्थापित होंगे,धार्मिक आस्था बढ़ेगी।
वृषभ राशि :- आज दिनचर्या में आए बदलाव से जरूरी कार्य लंबित रहेंगे,धार्मिक आयोजनों में शामिल होंगे।परिजनों से विवाद समाप्त होगा।प्रेम प्रसंग में सफलता मिलेगी।आवास निवास संबंधी समस्या का समाधान होगा।
मिथुन राशि :- आज व्यावसायिक गतिविधियां बढेंगी।धार्मिक आस्था में वृद्धि होगी,कर्मचारियों का सहयोग आगे बढ़ने में सहायक होगा।संतान के व्यवहार से नाखुश रहेंगे।बहनों के व्यवहार से नाराज रहेंगे।
कर्क राशि :- अपने काम करने के तरीकों में बदलाव लाना आवश्यक है।वैवाहिक जीवन में चल रहे तनाव समाप्त होंगे।पैतृक संपत्ति से संबंधित चल रहे विवाद आपसी सामंजस्य से ही हल होंगे।
सिंह राशि :- जीवन में मिले धोखे आज कठोर निर्णय लेने पर मजबूर करेंगे।प्रेम प्रसंग में चल रहे तनाव बढ़ सकते हैं।दूसरों के निजी कार्यों में दखल न दें।आर्थिक स्थिति सुधरेगी,यात्रा सुखद रहेगी।
कन्या राशि :- व्यापार में लाभ होगा।तेल तिलहन के कार्य से जुड़े व्यापारियों के लिए समय शुभ है।नए राजनीतिक संबंध स्थापित होंगे जो लाभकारी साबित होंगे।संतान के करियर में आ रही बाधा दूर होगी।
तुला राशि :- अपने बल पर आगे बढ़ेंगे।अपनी निंदा से घबराएं नहीं मेहनत करें और आगे बढ़ें।धार्मिक आस्था बढ़ेगी,पेट से संबंधित पीड़ा रहेगी।कार्यस्थल पर अधिकारियों से व्यवहार मधुर होंगे।
वृश्चिक राशि :– समय रहते निजी कार्य पूरे करें।स्वास्थ्य का ध्यान रखें,धन संपत्ति के मामलों में सतर्क रहें।भविष्य को लेकर चिंतित रहेंगे।जीवनसाथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा।नौकरी में तबादले के योग बन रहे हैं।
धनु राशि :- अपने व्यवहार को दुरुस्त करने की आवश्यकता है।कम बोलें अच्छा बोलें,क्रोध की अधिकता से बने काम बिगड़ सकते हैं।भाइयों के व्यवहार से नाखुश रहेंगे,संपत्ति से संबंधित कानूनी विवाद आपसी समझौते से ही हल होंगे।
मकर राशि :- आज आपको समय की अनुकूलता का आभास होगा।धार्मिक आस्था बढ़ेगी।वाहन सुख संभव है।कर्मचारी के सहयोग से कार्य पूरे होंगे।मकान दुकान से संबंधित समस्या का समाधान पक्ष में होगा।
कुम्भ राशि :- आज का दिन शुभ है।रूके कार्य पूरे होंगे,पारिवारिक आपसी विवाद खत्म होंगे।स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें,मित्रों के साथ मनोरंजन में समय व्यतीत होगा।मनपसंद भोजन की प्राप्ति होगी।मांगलिक आयोजनों में शामिल होंगे।
मीन राशि :- आज आपका मन अशांत रहेगा।पारिवारिक संपत्ति के विवाद यथावत रहेंगे,संतान के दांपत्य में चल रहे विवाद से परेशान रहेंगे।यात्रा के योग बन रहे हैं,कार्यस्थल पर लोगों के सहयोगी व्यवहार से कार्य पूरे होंगे।
सोलह कलाओं का अर्थ क्या है
श्री राम 12 कलाओं के ज्ञाता थे तो भगवान श्रीकृष्ण सभी 16 कलाओं के ज्ञाता हैं। चंद्रमा की सोलह कलाएं होती हैं। सोलह श्रृंगार के बारे में भी आपने सुना होगा। आखिर ये 16 कलाएं क्या है? उपनिषदों अनुसार 16 कलाओं से युक्त व्यक्ति ईश्वरतुल्य होता है। आपने सुना होगा कुमति, सुमति, विक्षित, मूढ़, क्षित, मूर्च्छित, जाग्रत, चैतन्य, अचेत आदि ऐसे शब्दों को जिनका संबंध हमारे मन और मस्तिष्क से होता है, जो व्यक्ति मन और मस्तिष्क से अलग रहकर बोध करने लगता है वहीं 16 कलाओं में गति कर सकता है।चन्द्रमा की सोलह कला : अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत। इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है।उक्तरोक्त चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाएं हैं उसी तरह मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है। मन को चंद्रमा के समान ही माना गया है। जिसकी अवस्था घटती और बढ़ती रहती है। चंद्र की इन सोलह अवस्थाओं से 16 कला का चलन हुआ। व्यक्ति का देह को छोड़कर पूर्ण प्रकाश हो जाना ही प्रथम मोक्ष है।मनुष्य (मन) की तीन अवस्थाएं : प्रत्येक व्यक्ति को अपनी तीन अवस्थाओं का ही बोध होता है:- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। क्या आप इन तीन अवस्थाओं के अलावा कोई चौथी अवस्था जानते हैं? जगत तीन स्तरों वाला है- 1.एक स्थूल जगत, जिसकी अनुभूति जाग्रत अवस्था में होती है। 2.दूसरा सूक्ष्म जगत, जिसका स्वप्न में अनुभव करते हैं और 3.तीसरा कारण जगत, जिसकी अनुभूति सुषुप्ति में होती है।तीन अवस्थाओं से आगे: सोलह कलाओं का अर्थ संपूर्ण बोधपूर्ण ज्ञान से है। मनुष्य ने स्वयं को तीन अवस्थाओं से आगे कुछ नहीं जाना और न समझा। प्रत्येक मनुष्य में ये 16 कलाएं सुप्त अवस्था में होती है। अर्थात इसका संबंध अनुभूत यथार्थ ज्ञान की सोलह अवस्थाओं से है। इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न मिलते है।
जानिए 16 कलाओं के नाम।
इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में अलगे अलग मिलते हैं।
1.अन्नमया, 2.प्राणमया, 3.मनोमया, 4.विज्ञानमया, 5.आनंदमया, 6.अतिशयिनी, 7.विपरिनाभिमी, 8.संक्रमिनी, 9.प्रभवि, 10.कुंथिनी, 11.विकासिनी, 12.मर्यदिनी, 13.सन्हालादिनी, 14.आह्लादिनी, 15.परिपूर्ण और 16.स्वरुपवस्थित।
अन्यत्र 1.श्री, 3.भू, 4.कीर्ति, 5.इला, 5.लीला, 7.कांति, 8.विद्या, 9.विमला, 10.उत्कर्शिनी, 11.ज्ञान, 12.क्रिया, 13.योग, 14.प्रहवि, 15.सत्य, 16.इसना और 17.अनुग्रह।
कहीं पर 1.प्राण, 2.श्रधा, 3.आकाश, 4.वायु, 5.तेज, 6.जल, 7.पृथ्वी, 8.इन्द्रिय, 9.मन, 10.अन्न, 11.वीर्य, 12.तप, 13.मन्त्र, 14.कर्म, 15.लोक और 16.नाम।
16 कलाओं का रहस्य जानिए…
16 कलाएं दरअसल बोध प्राप्त योगी की भिन्न-भिन्न स्थितियां हैं। बोध की अवस्था के आधार पर आत्मा के लिए प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक चन्द्रमा के प्रकाश की 15 अवस्थाएं ली गई हैं। अमावास्या अज्ञान का प्रतीक है तो पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान का।
19 अवस्थाएं : भगवदगीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने आत्म तत्व प्राप्त योगी के बोध की उन्नीस स्थितियों को प्रकाश की भिन्न-भिन्न मात्रा से बताया है। इसमें अग्निर्ज्योतिरहः बोध की 3 प्रारंभिक स्थिति हैं और शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् की 15 कला शुक्ल पक्ष की 01..हैं। इनमें से आत्मा की 16 कलाएं हैं।
आत्मा की सबसे पहली कला ही विलक्षण है। इस पहली अवस्था या उससे पहली की तीन स्थिति होने पर भी योगी अपना जन्म और मृत्यु का दृष्टा हो जाता है और मृत्यु भय से मुक्त हो जाता है।
अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥
अर्थात : जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।- (8-24)
भावार्थ : श्रीकृष्ण कहते हैं जो योगी अग्नि, ज्योति, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के छह माह में देह त्यागते हैं अर्थात जिन पुरुषों और योगियों में आत्म ज्ञान का प्रकाश हो जाता है, वह ज्ञान के प्रकाश से अग्निमय, ज्योर्तिमय, दिन के सामान, शुक्लपक्ष की चांदनी के समान प्रकाशमय और उत्तरायण के छह माहों के समान परम प्रकाशमय हो जाते हैं। अर्थात जिन्हें आत्मज्ञान हो जाता है। आत्मज्ञान का अर्थ है स्वयं को जानना या देह से अलग स्वयं की स्थिति को पहचानना।
विस्तार से…
1.अग्नि:- बुद्धि सतोगुणी हो जाती है दृष्टा एवं साक्षी स्वभाव विकसित होने लगता है।
2.ज्योति:- ज्योति के सामान आत्म साक्षात्कार की प्रबल इच्छा बनी रहती है। दृष्टा एवं साक्षी स्वभाव ज्योति के सामान गहरा होता जाता है।
3.अहः- दृष्टा एवं साक्षी स्वभाव दिन के प्रकाश की तरह स्थित हो जाता है।
16 कला – 15कला शुक्ल पक्ष + 01 उत्तरायण कला
1.बुद्धि का निश्चयात्मक हो जाना।
2.अनेक जन्मों की सुधि आने लगती है।
3.चित्त वृत्ति नष्ट हो जाती है।
4.अहंकार नष्ट हो जाता है।
5.संकल्प-विकल्प समाप्त हो जाते हैं। स्वयं के स्वरुप का बोध होने लगता है।
6.आकाश तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। कहा हुआ प्रत्येक शब्द सत्य होता है।
7.वायु तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। स्पर्श मात्र से रोग मुक्त कर देता है।
8.अग्नि तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। दृष्टि मात्र से कल्याण करने की शक्ति आ जाती है।
9.जल तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। जल स्थान दे देता है। नदी, समुद्र आदि कोई बाधा नहीं रहती।
10.पृथ्वी तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। हर समय देह से सुगंध आने लगती है, नींद, भूख प्यास नहीं लगती।
11.जन्म, मृत्यु, स्थिति अपने आधीन हो जाती है।
12.समस्त भूतों से एक रूपता हो जाती है और सब पर नियंत्रण हो जाता है। जड़ चेतन इच्छानुसार कार्य करते हैं।
13.समय पर नियंत्रण हो जाता है। देह वृद्धि रुक जाती है अथवा अपनी इच्छा से होती है।
14.सर्व व्यापी हो जाता है। एक साथ अनेक रूपों में प्रकट हो सकता है। पूर्णता अनुभव करता है। लोक कल्याण के लिए संकल्प धारण कर सकता है।
15.कारण का भी कारण हो जाता है। यह अव्यक्त अवस्था है।
16.उत्तरायण कला- अपनी इच्छा अनुसार समस्त दिव्यता के साथ अवतार रूप में जन्म लेता है जैसे राम, कृष्ण यहां उत्तरायण के प्रकाश की तरह उसकी दिव्यता फैलती है।
सोलहवीं कला पहले और पन्द्रहवीं को बाद में स्थान दिया है। इससे निर्गुण सगुण स्थिति भी सुस्पष्ट हो जाती है। सोलह कला युक्त पुरुष में व्यक्त अव्यक्त की सभी कलाएं होती हैं। यही दिव्यता है।
सत्कर्म करते रहना ही सही अर्थों में जीवन से प्रेम है।मंगलकामना : प्रभु आपके जीवन से अन्धकार (अज्ञान )को मिटायें एवं प्रकाश (ज्ञान )से भर दें।
“जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख”।
“सत्य वचन में प्रीति करले,सत्य वचन प्रभु वास।
सत्य के साथ प्रभु चलते हैं, सत्य चले प्रभु साथ।। ”
मनुष्य पद की गरिमा को क्यों खोता है और उसके क्या परिणाम होते है ?
उत्तर मनुष्य पद की गरिमा को तामसिक प्रवृतियों वासना लालच एवं अहंकार ) के आधीन होने के कारण खोता है। पवित्र गीता के अनुसार ये प्रवृतिया नरक का द्वार है। हमारे मत में ये प्रवृतिया हमारे जीवन में तामस के उदय का आरम्भ है और यही तामस मानवो के जीवन में अज्ञानता , जड़ता एवं मूढ़ता के उदय का कारण है जो हमें नरक लोक ले जाने में सक्षम है। अतः भ्रष्टाचार से बचो यानि पद की गरिमा को मत खोओ कोई भी पद या सम्मान (गरिमा ) इस जन्म में (पूर्व में संचित ) पुण्य कर्मो की देन है !पुण्य कर्मो के ह्यास के साथ ही गरिमा भी समाप्त हो जाती है और मानव को फिर अनेक योनियों में भटकना पड़ता है )
“एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है…”
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर
शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे ” विभूतिया ” (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम ” दुर्गति ” ( बुराइया / पाप इत्यादि !
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !
शाकाहार अपनाओ करुणा को चुनो।
परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥
तनु तिज तात जाहु मम धामा। देउँ काह तुम्ह पूरनकामा॥
भावार्थ:- जिनके मन में दूसरे का हित बसता है (समाया रहता है), उनके लिए जगत् में कुछ भी (कोई भी गति) दुर्लभ नहीं है। हे तात! शरीर छोड़कर आप मेरे परम धाम में जाइए। मैं आपको क्या दूँ? आप तो पूर्णकाम हैं (सब कुछ पा चुके हैं)॥
भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है।
सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।
जिस प्रकार मैले दर्पण में सूर्य देव का प्रकाश नहीं पड़ता है उसी प्रकार मलिन अंतःकरण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता है अर्थात मलिन अंतःकरण में शैतान अथवा असुरों का राज होता है ! अतः ऐसा मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत्त ” दिव्यदृष्टि ” या दूरदृष्टि का अधिकारी नहीं बन सकता एवं अनेको दिव्य सिद्धियों एवं निधियों को प्राप्त नहीं कर पाता या खो देता है !
सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है। आवश्यकता है उसे आचरण में उतारने की
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो।
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो शाकाहार अपनाओ करुणा को चुनो।
हर हर महादेव जय शोमेश महादेव शांब सदाशिव