भारतीय शेयर बाजार में मंगलवार के कारोबारी सत्र में भारी गिरावट देखने को मिल रही है.दुनिया भर के बाजारों में जोरदार गिरावट की वजह से मंगलवार 12 नवंबर 2024 को घरेलू शेयर बाजार में चौतरफा हाहाकार मच गया. कारोबार के आखिर में बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का प्रमुख संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 906.80 अंक या 1.14% की भारी गिरावट के साथ 78,589.35 अंक पर बंद हुआ. वहीं, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी भी 288.80 अंक या 1.2% का गोता लगाकर 23,852.50 अंक पर पहुंच गया. हालांकि, सुबह के कारोबार में सेंसेक्स और निफ्टी क्रमश: 148.80 अंक या 0.19% बढ़कर 79,644.95 अंक और 84.50 अंक या 0.35% की बढ़त के साथ 24,225.80 अंक पर खुले थे.
एनटीपीसी को सबसे अधिक नुकसान
शेयर बाजार के कारोबार के आखिर में बीएसई सेंसेक्स में सूचीबद्ध 30 कंपनियों में से 25 शेयर भारी गिरावट के साथ बंद हुए, जबकि 5 शेयर मुनाफे में रहे. वहीं, एनएसई में 2,864 कंपनियों में से 2,117 शेयर गिर गए, 674 शेयर बढ़त में रहे और 73 शेयरों में किसी प्रकार का बदलाव नहीं हुआ. बीएसई में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) को सबसे अधिक नुकसान हुआ. इसका शेयर 3.16% टूटकर 380.05 रुपये पर बंद हुआ. वहीं, एनएसई में बिस्कुट बनाने वाली कंपनी ब्रिटानियों को सबसे अधिक घाटा हुआ. इसका शेयर 7.30% गिरकर 5038 रुपये पर पहुंच गया.
विदेशी निवेशकों की बिकवाली और कंपनियां के कमजोर तिमाही नतीजे की वजह से घरेलू शेयर बाजार मंगलवार को एक बार फिर बड़ी गिरावट का शिकार हो गया। आज के कारोबार की शुरुआत मजबूती के साथ हुई और दोनों सूचकांकों को खरीदारों का सपोर्ट भी मिला, लेकिन पहले घंटे का कारोबार खत्म होने के बाद बिकवाली का दबाव बढ़ता चला गया, जिसकी वजह से दोनों सूचकांकों में बड़ी गिरावट आ गई। पूरे दिन के कारोबार के बाद सेंसेक्स 1.03 प्रतिशत और निफ्टी 1.07 प्रतिशत की गिरावट के साथ बंद हुए।
आज के कारोबार में आईटी को छोड़ कर बीएसई के सभी सेक्टोरल इंडेक्स गिरावट के साथ बंद हुए। ऑटोमोबाइल, पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइज और मेटल सेक्टर के शेयरों में आज सबसे अधिक बिकवाली होती रही। इसी तरह एनर्जी, बैंकिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, कैपिटल गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल, एफएमसीजी, हेल्थकेयर, ऑयल एंड गैस और टेक इंडेक्स भी गिरावट के साथ बंद हुए। दूसरी ओर आईटी इंडेक्स 0.05 प्रतिशत की मामूली बढ़त के साथ बंद होने में सफल रहा। ब्रॉडर मार्केट में भी आज बिकवाली का दबाव बना रहा, जिसके कारण बीएसई का मिडकैप इंडेक्स 0.98 प्रतिशत की गिरावट के साथ बंद हुआ। इसी तरह स्मॉलकैप इंडेक्स ने 1.26 प्रतिशत टूट कर आज के कारोबार का अंत किया।
आज शेयर बाजार में आई गिरावट के कारण स्टॉक मार्केट के निवेशकों की संपत्ति में 5 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक की कमी हो गई। बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइजेशन आज के कारोबार के बाद घट कर 437.02 लाख करोड़ रुपये (अस्थाई) हो गया। पिछले कारोबारी दिन यानी सोमवार को इनका मार्केट कैपिटलाइजेशन 442.36 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह निवेशकों को आज के कारोबार से करीब 5.34 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो गया।
आज दिन भर के कारोबार में बीएसई में 4,061 शेयरों में एक्टिव ट्रेडिंग हुई। इनमें 1,226 शेयर बढ़त के साथ बंद हुए, जबकि 2,742 शेयरों में गिरावट का रुख रहा, वहीं 93 शेयर बिना किसी उतार चढ़ाव के बंद हुए। एनएसई में आज 2,473 शेयरों में एक्टिव ट्रेडिंग हुई। इनमें से 563 शेयर मुनाफा कमा कर हरे निशान में और 1,910 शेयर नुकसान उठा कर लाल निशान में बंद हुए। इसी तरह सेंसेक्स में शामिल 30 शेयरों में से 5 शेयर बढ़त के साथ और 25 शेयर गिरावट के साथ बंद हुए। जबकि निफ्टी में शामिल 50 शेयरों में से 7 शेयर हरे निशान में और 43 शेयर लाल निशान में बंद हुए।
बीएसई का सेंसेक्स आज 148.80 अंक की मजबूती के साथ 79,644.95 अंक के स्तर पर खुला। कारोबार की शुरुआत होते ही बिकवाली का दबाव बन जाने की वजह से इस सूचकांक में गिरावट आ गई। हालांकि थोड़ी देर बाद ही खरीदारों ने लिवाली शुरू कर दी, जिससे ये सूचकांक 324.83 अंक की मजबूती के साथ 79,820.98 अंक तक पहुंचने में सफल रहा। सेंसेक्स की ये मजबूती अधिक देर तक नहीं टिक सकी। सुबह 10 बजे के बाद बाजार पर पूरी तरह से बिकवालों का कब्जा हो गया, जिसके कारण ये सूचकांक गिरता चला गया। आज का कारोबार खत्म होने के थोड़ी देर पहले ये सूचकांक ऊपरी स्तर से 1,273.14 अंक टूट कर 948.31 अंक की कमजोरी के साथ 78,547.84 अंक तक पहुंच गया। पूरे दिन के कारोबार के बाद सेंसेक्स 820.97 अंक की गिरावट के साथ 78,675.18 अंक के स्तर पर बंद हुआ।
सेंसेक्स की तरह ही एनएसई के निफ्टी ने आज 84.50 अंक की बढ़त के साथ 24,225.80 अंक के स्तर से कारोबार की शुरुआत की। बाजार खुलते ही बिकवाली शुरू हो जाने के कारण ये सूचकांक लाल निशान में गिर गया, लेकिन थोड़ी ही देर बाद खरीदारी का सपोर्ट मिल जाने के कारण ये सूचकांक रिकवरी करते हुए 102.70 अंक की मजबूती के साथ 24,242 अंक तक पहुंचने में सफल रहा। हालांकि, पहले घंटे का कारोबार होने के बाद बाजार पर एक बार फिर बिकवालों ने अपना दबाव बना दिया, जिसके कारण ये सूचकांक गिरता चला गया। आज का कारोबार खत्म होने के थोड़ी देर पहले ये सूचकांक ऊपरी स्तर से 402.85 अंक गिर कर 302.15 अंक की गिरावट के साथ 23,839.15 अंक के स्तर तक पहुंच गया।
आखिरी आधे घंटे के कारोबार में खरीदारों ने एक बार फिर जोर बनाने की कोशिश की, जिससे ये सूचकांक निचले स्तर से 44.30 अंक की रिकवरी करके 257.85 अंक की गिरावट के साथ 23,883.45 अंक के स्तर पर बंद हुआ। पूरे दिन हुई खरीद बिक्री के बाद स्टॉक मार्केट के दिग्गज शेयरों में से ट्रेंट लिमिटेड 0.74 प्रतिशत, इंफोसिस 0.47 प्रतिशत, सन फार्मास्युटिकल्स 0.35 प्रतिशत, एचसीएल टेक्नोलॉजी 0.30 प्रतिशत और रिलायंस इंडस्ट्रीज 0.12 प्रतिशत की मजबूती के साथ आज के टॉप 5 गेनर्स की सूची में शामिल हुए। दूसरी ओर, ब्रिटानिया 7.49 प्रतिशत, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स 3.20 प्रतिशत, एनटीपीसी 3.12 प्रतिशत, एचडीएफसी बैंक 2.72 प्रतिशत और एशियाई पेंट्स 2.68 प्रतिशत की गिरावट के साथ आज के टॉप 5 लूजर्स की सूची में शामिल हुए।
शेयर बाजार में गिरावट का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। आज एक बार फिर बाजार में बड़ी गिरावट आई, जिससे निवेशकों के 5 लाख करोड़ डूब गए हैं। 1 अक्टूबर से लेकर 12 नवंबर तक की बात करें तो शेयर मार्केट निवेशकों के 4,37,06,647 रुपये डूब गए है। निफ्टी 50 26 हजार की रिकॉर्ड हाई से टूटकर 23,883 अंक पर पहुंच गया है। वहीं, सेंसेक्स भी 85,500 से लुढ़ककर 78,675 अंक पर आ गया है। बाजार में जारी गिरावट से निवेशक सहमे हुए हैं। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि यह गिरावट कहां जाकर रुकेगी। ऐसे में अगर आप भी स्टॉक मार्केट में निवेशक हैं तो मन में यह सवाल जरूर होगा कि बाजार में क्यों गिरावट रुक नहीं रही और यह गिरावट कहां जाकर थमेगी। आइए आपके सभी सवालों के जवाब देते हैं।
1. एशियाई शेयरों में भारी गिरावट
चीनी बाजारों और सेमीकंडक्टर शेयरों में गिरावट के कारण मंगलवार को एशियाई शेयरों में गिरावट आई, क्योंकि निवेशकों ने अमेरिकी राष्ट्रपति-चुनाव डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों पर चिंता व्यक्त की। इस बीच, बिटकॉइन रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया, इस उम्मीद से कि नए प्रशासन से लाभान्वित होने वाली संपत्तियां अच्छा प्रदर्शन करेंगी। इसका असर आज भारतीय बाजार पर हुआ।
2. विदेशी निवेशकों की बिकवाली का सिलसिला जारी
11 नवंबर को विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने अपनी बिकवाली का सिलसिला जारी रखते हुए 2,306 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। इस बीच, नवंबर में अब तक एफआईआई ने 23,547 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं, जबकि अक्टूबर में 94,017 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे।
3. रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर
मंगलवार को भारतीय रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया, जिसकी वजह डॉलर का चार महीने से ज़्यादा के उच्चतम स्तर पर पहुंचना और स्थानीय इक्विटी से बिकवाली थी। रुपया 84.4125 के निचले स्तर पर पहुंचा और फिर 84.3925 पर बंद हुआ, जो पिछले सत्र के बंद स्तर से अपरिवर्तित था। मुद्रा लगातार पांच सत्रों से रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है। अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने डॉलर इंडेक्स को बढ़ावा दिया है, जो इस महीने अब तक 1.8% बढ़ा है।
4. महंगाई में उछाल की आशंका
विश्लेषकों को उम्मीद है कि अक्टूबर के मुद्रास्फीति के आंकड़े, जो बाजार बंद होने के बाद आने वाले हैं, बढ़कर 5.8% के आसपास पहुंच जाएंगे, जो 14 महीने का उच्चतम स्तर है। यह डेटा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है और यह निर्धारित कर सकता है कि भारतीय केंद्रीय बैंक दिसंबर में 25-आधार-बिंदु दर कटौती के साथ आगे बढ़ेगा या नहीं। इसका असर भी आज बाजार पर हुआ।
5. कंपनियों के खराब नतीजे
भारतीय कंपनियों के तिमाही नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं। इसका असर भी उन कंपनियों के शेयरों पर हुआ है, जिससे बाजार में गिरावट को बल दिया है।
बाजार की गिरावट पर कहां लगेगा ब्रेक
कोटक सिक्योरिटीज के इक्विटी रिसर्च हेड श्रीकांत चौहान ने कहा कि आज बेंचमार्क इंडेक्स में भारी बिकवाली देखी गई, निफ्टी 257 अंक नीचे बंद हुआ जबकि सेंसेक्स 790 अंक नीचे रहा। सेक्टरों में, लगभग सभी प्रमुख क्षेत्रीय सूचकांकों में उच्च स्तरों पर मुनाफावसूली देखी गई, लेकिन पीएसयू बैंक और ऑटो इंडेक्स में सबसे ज्यादा करीब 2 प्रतिशत की गिरावट आई। तकनीकी रूप से, दैनिक चार्ट पर, इसने लंबी मंदी की कैंडल बनाई है और इंट्राडे चार्ट पर, यह निचले शीर्ष गठन को बनाए हुए है, जो काफी हद तक नकारात्मक है। हमारा मानना है कि, जब तक बाजार 24000/79000 से नीचे कारोबार कर रहा है, तब तक कमजोर रुख जारी रहने की संभावना है। इसके नीचे गिरावट 23800/78500 तक जारी रह सकती है। 24000/79000 से ऊपर यह 24100 तक वापस उछल सकता है
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. वो 2025 की 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. इसी के साथ ट्रंप का दूसरा कार्यकाल शुरू हो जाएगा. ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति बनना भारत के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है. हालांकि, ट्रंप 2.0 में भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है.
हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की एक रिपोर्ट आई है. इस रिपोर्ट में ट्रंप की वापसी पर भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर को लेकर अनुमान लगाया है. रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि ट्रंप 2.0 में रुपया 8 से 10 फीसदी तक टूट सकता है. अगर ऐसा हुआ तो रुपया सबसे निचले स्तर पर पहुंच जाएगा.
एसबीआई की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि ट्रंप 2.0 में एक डॉलर की तुलना में रुपये का भाव गिर सकता है. हालांकि, कुछ समय बाद रुपये में मजबूती की उम्मीद भी जताई गई है.
डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने की कोशिश करता है.
क्या कभी मजबूत भी हुआ है रुपया?
ऐसा अक्सर कहा जाता है कि आजादी के समय रुपये और डॉलर बराबर थे और तब एक डॉलर की कीमत एक रुपये के बराबर थी. हालांकि, ऐसा नहीं था. 1947 में एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये के बराबर थी. 1965 तक इतनी ही कीमत रही. 1966 से डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर होने लगा.
1975 आते-आते डॉलर की कीमत हो गई 8 रुपये और 1985 में डॉलर का भाव 12 रुपये के पार चला गया. 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने उदारीकरण की राह पकड़ी और रुपया तेजी से गिरने लगा. 21वीं सदी की शुरुआत होते-होते तक डॉलर 45 रुपये तक आ गया.
आजादी के बाद से अब तक 10 बार ही ऐसा हुआ है, जब डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है. 1977 से 1980 के बीच लगातार 4 साल तक रुपये की स्थिति में सुधार हुआ था. तब रुपया एक रुपये तक मजबूत हुआ था. इसके बाद 2003, 2004 और 2005 में भी रुपये में सुधार हुआ था. तब ढाई रुपये तक की मजबूती आई थी. इसी तरह 2007 में करीब 3 रुपये, 2010 में 4 रुपये और 2017 में 2 रुपये की मजबूती आई थी
ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी गिरावट आई थी
SBI की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप के पहले कार्यकाल (2017-2021) के दौरान भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 11 प्रतिशत तक कमजोर हुआ था। इसके बाद बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद भी रुपया कमजोर होता चला गया और अब तक यह 14.5 प्रतिशत तक गिर चुका है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में यह गिरावट और बढ़ सकती है, और रुपया 8 से 10 प्रतिशत और टूट सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 87 से 92 रुपये के बीच जा सकती है, जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि बाइडेन के कार्यकाल के दौरान एक डॉलर की औसत कीमत 79.3 रुपये रही थी, जबकि अब एक डॉलर की कीमत 84 रुपये से ज्यादा हो चुकी है।
ट्रंप 2.0 के कारण रुपये की स्थिति क्यों हो सकती है कमजोर?
रुपये के कमजोर होने के कई कारण हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय व्यापार और मुद्रा बाजार की स्थितियां। रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले इसलिए गिरती है, क्योंकि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा ज्यादा है और भारतीय मुद्रा का मुकाबला विदेशी मुद्रा से होता है। भारत में अधिकांश व्यापार डॉलर में होता है, यानी विदेशों से आयातित वस्तुएं डॉलर में ही खरीदी जाती हैं, और भारतीय उत्पादों का निर्यात भी डॉलर में होता है। डॉलर की तुलना में रुपये की स्थिति उस वक्त कमजोर होती है जब भारत ज्यादा आयात करता है और निर्यात कम करता है। भारत का व्यापार घाटा (trade deficit) हमेशा अधिक रहता है, यानी भारत अधिक चीजें विदेशों से खरीदता है लेकिन कम चीजें बेचता है। यही कारण है कि रुपये की स्थिति हमेशा कमजोर रहती है। 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा लगभग 20 लाख करोड़ रुपये के आसपास था, जो यह दर्शाता है कि भारत की स्थिति अभी भी कमजोर है।
विदेशी मुद्रा भंडार और रुपये की कमजोरी
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की महत्वपूर्ण भूमिका है। RBI (Reserve Bank of India) के अनुसार, 1 नवंबर 2024 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 589.84 अरब डॉलर था। यह भंडार रुपये को स्थिर बनाए रखने में मदद करता है। लेकिन अगर भारत के पास डॉलर का भंडार कम होता है, तो रुपया कमजोर हो सकता है। जब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है, तो इसका असर रुपये पर सकारात्मक होता है, और जब यह घटता है, तो रुपये की कीमत गिरने लगती है। इसके बावजूद, भारत का व्यापार घाटा अधिक होने की वजह से रुपया कमजोर ही रहता है। भारत अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लगातार डॉलर खरीदता है, और यही कारण है कि रुपये की कमजोरी लगातार बनी रहती है।
रुपये की गिरावट का असर और ट्रंप 2.0
यदि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में रुपये की कीमत और गिरती है, तो इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। आयात महंगे हो जाएंगे, और विदेशी निवेशकों के लिए भारत में निवेश करना महंगा हो सकता है। तेल जैसे आयातित सामान की कीमतों में बढ़ोतरी होगी, जिससे भारत की ऊर्जा लागत भी बढ़ सकती है। इसके अलावा, रुपये के कमजोर होने से भारतीय उत्पादों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकती हैं, जिससे भारत के निर्यातकों को फायदा हो सकता है। लेकिन यह फायदा लंबे समय तक नहीं रह सकता है, क्योंकि कमजोर रुपये का असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा। SBI की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारतीय रुपया 8 से 10 प्रतिशत तक कमजोर हो सकता है। इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, खासकर व्यापार घाटे और आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के रूप में। हालांकि, यह भी सच है कि रुपये की कीमतें हमेशा एक जैसे नहीं रहतीं और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर इसमें बदलाव आता रहता है।
फेड रिजर्व ने 75 बेसिस प्वाइंट की कटौती की
आपको बता दें पिछले दो बार से फेडरल रिजर्व की मीटिंग में अमेरिका में नीतिगत दर में 75 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई है. इसके अलावा दूसरे यूरोपीय देशों में भी केंद्रीय बैंक ने ब्याज दर में कटौती की है. जिसके बाद आरबीआई पर भी रेपो रेट घटाने को लेकर दबाव बढ़ गया. पहले कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि आरबीआई की तरफ से दिसंबर में होने वाली एमपीसी की मीटिंग में रेपो रेट को 25 से 50 बेसिस प्वाइंट तक कम किया जा सकता है. लेकिन हाल ही में एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया कि दिसंबर में रेपो रेट में कटौती किये जाने की उम्मीद कम ही है. उम्मीद की जा रही है कि फरवरी 2025 तक भारत का केंद्रीय बैंक कटौती का ऐलान कर सकता है.
क्या होगा असर?
महंगाई दर नीचे आने का असर सीधे तौर पर ब्याज दर पर पड़ता है. महंगाई दर नीचे आएगी तो आरबीआई (RBI) की तरफ से नीतिगत ब्याज दर में कटौती की जाएगी. इसका असर यह होगा कि बैंकों को रिजर्व बैंक से सस्ता लोन मिलेगा और बैंक ग्राहकों को कम ब्याज दर पर लोन मुहैया कराएंगे. ब्याज दर कम होगी तो इसका असर सीधे तौर पर ईएमआई पर देखा जाएगा. लेकिन अक्टूबर की ब्याज दर बढ़कर 14 महीने के रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गई है, जिससे दिसंबर की एमपीसी में रेपो रेट घटने की उम्मीद कम ही है.