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एक मिनट में 600 गोलियां! सेना के अफसर ने DRDO के साथ डेवलप की स्वदेशी मशीन पिस्टल..

नई दिल्ली: अब चीन और पाकिस्तान से लोहा लेने के लिए भारतीय सेना के हाथों में स्वदेशी मशीन पिस्टल (machine pistol) आ गई है. इस पिस्टल को भारतीय सेना के अफसर कर्नल प्रसाद बनसोड (Colonel Prasad Bansod) ने डेवलप किया है. इस पिस्टल का नाम है अस्मि, जिसका मतलब होता है मजबूत, गौरव और आत्म-सम्मान. यह पिस्टल देश की सेना का नया गौरव होगी.

भारतीय सेना आत्मनिर्भरता की राह पर चल रही है. उसी का नतीजा है पिस्टल ‘अस्मि’. इसे ईजाद देश के लोगों ने किया है और इसे बनाएगी भी देश की ही कंपनी. भारतीय सेना की लगातार कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा हथियार देश की कंपनियों से ही खरीदे जाएं. इसी कड़ी में 100 फीसदी स्वदेशी मशीन पिस्टल को भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया है.भारतीय सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए विकसित किया है.

भारतीय सेना में काम करने वाले कर्नल प्रसाद बनसोड ने डीआरडीओ के साथ मिलकर इस मशीन पिस्टल को डेवलप किया है. हैदराबाद की लोकेश मशीन कंपनी इसका प्रोडक्शन कर रही है. नॉर्दर्न कमांड में तैनात सैनिकों के लिए 550 अस्मि मशीन पिस्टल की खरीद की गई है और इसकी डिलीवरी भी की जा चुकी है. लोकेश मशीन कंपनी पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है. लोकेश मशीन रूस को मशीन टूल्स के शिपमेंट और कथित तौर पर मॉस्को के हथियार निर्माण क्षेत्र में मदद करने के लिए अमेरिकी ट्रेजरी विभाग की जांच के दायरे में है.

`अस्मि’ की 100 मीटर तक सटीक मार
अस्मि की खासियत की बात करें तो यह मशीन पिस्टल 100 मीटर तक सटीक मार कर सकती है. यह क्लोज क्वाटर बैटल, यानी कि नजदीक की लड़ाई के लिए एक भरोसेमंद हथियार है. यह काफी काम्पेक्ट है. अस्मि भारत की पहली स्वदेशी 9 एमएम मशीन पिस्टल है. इससे भारतीय सेना में पैदल सैनिकों का, यानी इन्फ्रेंट्री का फायर पावर बढ़ेगा. यह पिस्टल एक मिनट में 600 गोलियां दाग सकती है.

आतंकी हमलों के दौरान यह पिस्टल काफी कारगर साबित होगी. आतंकविरोधी ऑपरेशन के दौरान इस तरह की हल्की और छोटी मशीन पिस्टल की बहुत जरूरत होती है. इसमें लगने वाली मैगजीन में 33 गोलियां आती हैं. अस्मि के ऊपर टेलिस्कोप, लेजर बीम, बाइनाकुलर आसानी से लगाए जा सकते हैं. इससे ऑपरेशन के दौरान बड़ी मदद मिलती है. खास बात यह है कि इस मशीन पिस्टल के लोडिंग स्विच दोनों तरफ हैं, यानी लेफ्ट हैंडर हो या राइट हैंडर, इस पिस्टल को चलाना दोनों के लिए आसान है.

पिस्टल बन सकती है राइफल
पिस्टल की बट को फोल्ड किया जा सकता है जिससे इसका साइज छोटा हो जाता है और इसे आसानी से छिपाकर भी ले जाया जा सकता है. इसे एक पिस्टल के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है और सामान्य रायफल की तरह भी. इसे कंधे पर टिकाकर भी फायर किया जा सकता है. शहरी इलाकों में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए यह एक बेस्ट वेपन है.

इसे बनाने में चार महीने का समय लगा है. इसके दो वैरिएंट्स हैं. 9 एमएम की मशीन पिस्टल का वजन सिर्फ 1.80 किलोग्राम है. इसकी लंबाई 14 इंच है. बट खोलने पर यह लंबाई बढ़कर 24 इंच हो जाती है. इस पिस्टल को एल्यूमिनियम और कार्बन फाइबर से बनाया गया है. इसकी मैगजीन की खासियत यह है कि स्टील लाइनिंग होने की वजह से गोलियां इनमें फंसेंगी नहीं.

अस्मि की सफलता, आत्मनिर्भर होते भारत की बानगी है. यह न सिर्फ देश की मजबूत होती डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की झलक पेश करती है, बड़ी सफलता हासिल की है. काफी कम समय में इसे विकसित किया गया है. बल्कि हमारे तकनीकी कौशल को भी दिखाती है. इसका फायदा भारतीय सेना को होगा और अब हम और मजबूती से देश के दुश्मनों को मुहंतोड़ जवाब दे पाएंगे.

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