{ दुष्यंत कुमार की गज़ल }
जमाने की आवाज़ बन गई : डॉ. रजनीश कुमार त्रिपाठी
• कवि बनाम शायर – दुष्यंत कुमार
• हिन्दी ग़ज़ल के प्रणेता दुष्यंत कुमार त्यागी का जन्म आज ही के दिन,1 सितम्बर सन 1933 में बिजनौर जनपद की, नजीबाबाद तहसील के ग्राम – राजापुर नवादा,(बिजनौर)
बिजनौर : उत्तर- प्रदेश के एक संपन्न त्यागी परिवार में हुआ था। दुष्यंत कुमार की गज़लें किसी व्यक्ति की दिल की आवाज़ न होकर आज ज़माने की आवाज़ और मशाल बन गई है।
चुनाव के विषय में लिखते हुए दुष्यंत कुमार कहते हैं कि –
・कैसे घरों में बंद विद्रोह के तर्क
बाहर आ जाते हैं,
और लोकतंत्र के समर्थन में
सफल वातावरण बनाते हैं।
भारत में छठवें दशक के बाद गणतंत्र की विडम्बनाओं के कई रूप मिलते हैं।अविश्वसीनयता, काहिली,भ्रष्टाचार,कठहुज्जती, नौकरशाही,छल प्रपंच,धोखा।
इनसे परेशान दुष्यंत कुमार ने कई गज़लें लिखी हैं। उनमें से कुछ शेर यहाँ प्रस्तुत है –
मरूस्थल आमेस होते है सियासत के क़दम,
तू न समझेगा सियासत, तू अगर इंसान है।
ख़ास सड़कें बंद हैं, तब से मरम्मत के लिये,
ये हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है।
वह अपने एक गीत में कहते हैं –
जिन्दगी ने कर लिया स्वीकार अब तो पथ यही है।
अब उफनते ज्वार का आवेग मद्धम हो चला है,
एक हल्का-सा धुंधलका था कहीं कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार
अब तो पथ यही है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी दुष्यंत कुमार ने हिन्दी साहित्य के विभिन्न विधाओं में अपनी सशक्त लेखनी का परिचय दिया।लेकिन एक गज़लकार के रूप में उन्होंने समाज को बहुत कुछ दिया है।
उन्होंने जो स्वप्न देखे थे वे इस प्रकार हैं।
• फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम, अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आयेंगे।
• रह रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी,आगे और बड़े तो शायद दृश्य सुहाने आयेंगे।
हिंदी साहित्य और शेरो शायरी तथा गज़ल के लेखक दुष्यंत कुमार के जन्म दिवस पर सादर प्रेषित ।
डॉo रजनीश कुमार त्रिपाठी
प्रवक्ता – हिन्दी
श्री बालाजी पीo जीo कॉलेज
पकड़ी नौनियाँ, महराजगंज