सवांददाता मीडिया प्रभारी मनोज मूंधड़ा बीकानेर श्रीडूंगरगढ़
शरीर के माध्यम से प्राण पर नियंत्रण करके संतुलित इच्छा की ओर ले जाना हठयोग प्रदीपिका : कालवा
श्रीडूंगरगढ़ कस्बे की ओम योग सेवा संस्था के निदेशक योगाचार्य ओम प्रकाश कालवा ने सत्यार्थ न्यूज चैनल पर 69 वां अंक प्रकाशित करते हुए हठयोग प्रदीपिका के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया। हठयोग प्रदीपिका हठयोग से सम्बन्धित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह संस्कृत में है और इसके रचयिता गुरु गोरखनाथ के शिष्य स्वामी स्वात्माराम थे। हठयोग के प्राप्त ग्रन्थों में यह सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रन्थ है। हठयोग के दो अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं – घेरण्ड संहिता तथा शिव संहिता। इस ग्रन्थ की रचना १५वीं शताब्दी में हुई। इसमें चार अध्याय हैं जिनमें आसन, प्राणायाम, चक्र, कुण्डलिनी, बन्ध, क्रिया, शक्ति, नाड़ी, मुद्रा आदि विषयों का वर्णन है। यह सनातन हिन्दू योगपद्धति का अनुसरण करती है और श्री आदिनाथ (भगवान शंकर) के मंगलाचरण से आरम्भ होती है। इसमें शारीरिक क्रियाओं और आध्यात्मिक क्रियाओं का सम्मिश्रण किया गया है।
सिद्धांत
-शरीर के माध्यम से प्राण पर नियंत्रण करके संतुलित इच्छा की ओर ले जाना हठयोग का मूल उद्देश्य है। हं और ठं का योग अर्थात् दाहिने और बायें स्वर को समस्वर कर लेना, शिव और शक्ति का मिलन, नाड़ी संतुलन के पश्चात् सुषुम्ना जागरण ही हठयोग है। इस अवस्था में इच्छा सकारात्मक, रचनात्मक, तथा आत्मोन्नति का कारण बनती है ।
मुद्राएं
-हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख कर उनके अभ्यास पर जोर दिया गया है। ये हैं- महामुद्रा महाबंधो महावेधश्च खेचरी।
निवेदन
-ओम योग सेवा संस्था श्री डूंगरगढ़ द्वारा जनहित में जारी।