रिपोर्टर देवीनाथ लोखंडे बैतूल
शुरू होने से पहले ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी करोड़ों की पारसडोह परियोजना
विद्वान अभियंताओं एवं अधिकारियों ने योजना को प्रारंभ होने के पूर्व ही बंद होने की कगार पर पहुंचा दिया
10 गांवों का विस्थापन कर इस योजना के लिए दी गई थी हजारों किसानों की जमीन
बैतूल। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 11 सितंबर 2018 को बड़ी धूमधाम से मुलताई के शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय स्टेडियम ग्राउंड में पारसडोह परियोजना को लॉन्च किया था, जिसका उद्देश्य 42 गांवों के लगभग 20,000 हेक्टेयर कृषि भूमि को सींचने के लिए विश्व प्रसिद्ध इजरायली स्प्रिंकलर तकनीक के माध्यम से किसानों की आय और उत्पादन बढ़ाना था। जिले में किसानों को समर्पित पारसडोह परियोजना की स्थिति अब गंभीर है। पांच वर्षों बाद भी इस परियोजना का पूरा लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाया है, जिससे वे हताश और गुस्से में हैं।
उक्त परियोजना में जिले की 296.94 वर्ग किलोमीटर जल ग्रहण क्षेत्र लेकर मुख्य बांध की लंबाई 1612 मीटर मिट्टी के बांध की लंबाई 1503 मीटर पक्के (स्पिल वे) बांध की लंबाई 136.50 मीटर जल द्वार की संख्या 6 जल द्वार का साइज 15.50 मीटर × 10.55 मीटर बांध की अधिकतम ऊंचाई 27 मीटर बांध की पूर्ण जल स्तर संग्रहण क्षमता 72.73 मिट्रिक घन मीटर उपयोगी जल ग्रहण क्षमता 69.82 मिट्रिक घन मीटर क्षमता के बांध का लोकार्पण किया गया। जिसमें 10 ग्रामों की लगभग 1300 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि का अर्जन किया गया बोरगांव एवं देवडोगरी दो ग्रामों का विस्थापन किया गया। लगभग 1000 किसानों ने अपनी भूमि इस उम्मीद से शासन को दी कि अपने 42 गांव के 20000 किसान लोग 20000 हेक्टेयर भूमि में कृषि के उच्चतम मानदंड निर्धारित कर विकास की गंगा बहाएंगे। उक्त परियोजना को तत्कालीन प्रदेश के मुखिया द्वारा विश्व की सर्वश्रेष्ठ इजरायली स्प्रिंकलर पद्धति का वरदान बैतूल जिले के धरती पुत्रों को 500 करोड रुपए स्वीकृत कर शिवराज सिंह चौहान के सपनों का भारत जिसमें सर्वश्रेष्ठ मेरा मध्य प्रदेश बनाने के लिए सौगात के रूप में पारसमणी रूपी पारसडोह बांध उपहार स्वरूप दिया गया। वर्ष 2018 से पारसडोह बांध को नियमित भरा जा रहा है जिसमें 20000 हेक्टेयर कृषि भूमि सीचने की क्षमता है। सरकार द्वारा उक्त पानी को किसानों को वितरित करने हेतु पंप पाइप विशेष रूप से भरपूर, अमूल्य बिजली एवं वितरण व्यवस्था हेतु भरपूर पैसा उपलब्ध कराया गया किंतु योजना प्रारंभ होने से पहले ही बंद होने की कगार पर पहुंच गई।
विद्वान अभियंताओं एवं अधिकारियों ने योजना को प्रारंभ होने के पूर्व ही बंद होने की कगार पर पहुंचा दिया है। विगत 5 वर्षों से मोटर पंप चालू तो किए जाते हैं, बिजली की खपत भी होती है बिजली के बिल भी आते हैं किंतु 42 ग्रामों के 20000 हेक्टेयर के 20000 कृषक फसल तो बोते हैं एवं सिंचाई हेतु दर-दर की ठोकरे खाकर फसल सूखते हुए देख देख कर व्यथित होते हैं। किसानों का दुखड़ा सुनने वाला कोई भी अधिकारी कर्मचारी या नेता समस्या का निराकरण कर समस्या को दूर न कर सका। योजना से मुख्यतः विद्वान अभियंताओं ने 42 ग्रामों के लगभग 20000 कृषकों की 20 हजार हेक्टेयर भूमि को व्यवस्थित पूर्ण और सुचारू रूप से स्प्रिंकलर चलवा कर उत्पादन के नए आयाम विस्थापित करने का लाभ बताया गया था। साथ ही 50 ग्रामों के लिए निस्तार एवं पीने के पानी की समस्या का सब्जबाग दिखाया गया था। विद्वान अभियंताओं द्वारा उक्त बांध हेतु जो भूमि अर्जित की गई है उसमें से अभी भी 40 हेक्टेयर भूमि में विगत 5 वर्षों के पश्चात भी बांध के पानी का जल भराव नहीं हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त भूमि किन्हीं किसी स्वार्थ या लाभ दुर्भावना पूर्वक जबरदस्ती किसानों से अर्जित की गई है एवं छोटे-छोटे भूखंडों को जो दलदल बन गए हैं एवं फसल उगाने लायक नहीं रह गए हैं, ऐसे कई कृषकों की भूमि अर्जित करने से किसानों के बार-बार निवेदन एवं आवेदन करने के उपरांत भी नियमों का हवाला बताकर कृषकों को जबरदस्ती अधिकारियों द्वारा परेशान किया जा रहा है। जैसे कि ग्राम नांदकुड़ी के कृषक देवराव झपाटे जिनकी पूरी कृषि भूमि बांध के वॉटर लॉगिंग के कारण पूरी तरह से दलदल बन चुकी है जिसमें विगत 5 वर्षों से निरंतर बोई गई फसल खराब हो जाती है। उक्त भूमि के जांच उपरांत भू-अर्जन के लिए अनुविभागीय अधिकारी राजस्व मुलताई द्वारा जल संसाधन संभाग मुलताई से भू अर्जन का प्रस्ताव भी मांगा गया किंतु दुर्भावना पूर्वक भू अर्जन का प्रस्ताव अधिकारियों द्वारा नहीं भेजा गया। ऐसे ही बोरगांव निवासी जो वर्ष 1991 में चांदोरा जलाशय के फूटने के कारण बाढ़ पीड़ित 83 परिवार पुनः पारसडोह जलाशय से तीनों तरफ से घेर दिए गए हैं जो विस्थापन की आस लेकर आज भी शासन की ओर निहार रहे हैं। इन घिरे हुए परिवारों का दुर्भाग्य देखे की चार तत्कालीन कलेक्टर एवं दो प्रमुख सचिवों और जलसंसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट के निर्देशों के बावजूद भी उनका विस्थापन नहीं होने दिया जा रहा है जबकि यहां रहने वाले 90 प्रतिशत किसानों की उपजाऊ कृषि भूमि पारसडोह जलाशय के लिए अर्जित की जा चुकी है जबकि धारा 2013 की 16 और 17 के अनुसार जिस भी कृषक की पूर्ण कृषि भूमि अर्जित की जाती है उनका विस्थापन जरूरी होता है किंतु दुर्भावना पूर्वक विद्वान अभियंताओं ने नियमों का हवाला देकर किसान एवं उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को गुमराह कर रखा है।
विद्वान अभियंताओं द्वारा बांध के दोनो तरफ के पंप हाऊस पर पहुचने हेतु बांध के आसपास पेरी फेरी रोड प्रस्तावित था जिसे आधा अधूरा बनाकर ठेकेदार को पूरा भुगतान तो कर दिया गया है किंतु मार्ग (सड़क) अभी भी अधूरा पड़ा हुआ है एवं वर्षा ऋतु में आवागमन के लायक नहीं रह जाता है जिससे पेरीफेरी रोड से आज की स्थिति में पंप हाउस की निगरानी एवं पंपों तक पहुंचाने के काम नहीं आ रहा है
विद्वान अभियंताओं ने ठेकेदार को बांध पर किसानों से अर्जित की गई बहुमूल्य भूमि पर ठेकेदार का विश्रामगृह एवं श्रमिकों का निवास एवं मशीनों के रखरखाव हेतु यार्ड निर्माण किन नियमों के तहत एवं किन-किन अधिकारियों की सय पर किया जा रहा है, किस अधिकारी ने अनुमति दे रखी है। बांध के पीछे भाग में डाउनस्ट्रीम ड्रेनेज बनाई गई है, उसकी आज तक पिचिंग नहीं की गई है जिसका भुगतान विभाग द्वारा ठेकेदार को कर दिया गया है जब कार्य पूर्ण नहीं हुआ तो ठेकेदार को पूर्ण भुगतान क्यों किया गया। पिचिंग नहीं होने से बांध के रिसाव का पानी किसानों की बिना अर्जित की गई भूमि में पानी भर जाता है, जिसे बांध के पास की भूमि दलदल हो जाती है जिससे किसानों की फसल खराब एवं आवागमन इत्यादि अनेक समस्याओं का जन्म हो रहा है जिससे विभाग एवं ठेकेदार की मिलीभगत होने का कहीं ना कहीं प्रश्नांकित चिन्ह खड़ा हो रहा है
पारसडोह जलाशय के नहर निर्माण में विद्वान अभियंताओं के मार्गदर्शन में ठेकेदार द्वारा नहर की पाइपलाइन का निश्चित गहराई पर नहीं गाड़ना नदी नालों में निश्चित गहराई पर पाइप नहीं बिछाकर लापरवाही पूर्वक नदी एवं नालों में पाइप पड़े रहने देना एवं कंक्रीटकरण नहीं करना लापरवाही एवं भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा प्रतीत होती है। निश्चित गहराई पर पाइप नहीं बिछाने से किसानों द्वारा खेत जुताई के दौरान कल्टीवेटर एवं पलाऊ में पाइपलाइन टूट-फूट हो जाना योजना को पलीता लगाने जैसा कार्य है। पाइपलाइन के विस्तारीकरण के दौरान ओएमएस पेटी को घटिया एवं हल्के टिन की चादरों से बनाने के फल स्वरुप पेटियां छिन्न-भिन्न हो गई है एवं पेटियों के नीचे कांक्रीटकरण बेस नहीं डालने से पेटी एवं ओएमएस असुरक्षित एवं छिन्न-भिन्न पड़े हुए हैं। प्रत्येक चको से किन-किन कृषकों को पानी दिया जाना है उक्त कोई सूची चक् एवं ग्राम पंचायत पटल पर कहीं भी नहीं लगाई गई है ना ही शासन के नियमानुसार कोई जल मित्र बनाए गए हैं ना ही कोई सुरक्षा समिति बनाई गई है ना ही कोई जल वितरण समिति बनाई गई है। पूरी व्यवस्था भगवान के भरोसे अवस्थित पड़ी हुई है जिसमें ठेकेदार के भ्रष्ट नुमाइंदे एवं कर्मचारी भ्रष्ट किसानों को उपकृत करते रहते हैं।
विद्वान अभियंताओं द्वारा शासन द्वारा निर्धारित या ठेकेदार से अनुबंध संख्याओं में कार्यकर्ता एवं अधिकारियों एवं इंजीनियर नहीं रखने से सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह से चूर-चूर हो चुकी है जिसमें पंप चलाने के बाद में किसानों की फसल को पानी प्राप्त होने के स्थान पर कहीं-कहीं किसानो की फसल एवं खाद बीज बहा दिए जाते हैं तो कहीं-कहीं नदी नालों में अवांछित पानी बहता रहता है उक्त अवयवस्था के कुप्रबंधन और दूरदर्शी मार्गदर्शन भ्रष्टाचार से ओतपोत होने से योजना विगत 5 वर्षों से प्रारंभ होने के पूर्व ही अवांछित खर्चो एवं बिजली बिल के बोझ से बंद होने की कगार पर पहुंचकर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है।
उपसंहार के रूप में किसानों से अभियंता एवं अधिकारी उद्घोषणा एवं ऐलान कर फसल तो बुआ लेते हैं किंतु सिंचाई हेतु पानी नहीं देकर किसानों की समस्या नहीं सुनकर किसानों को प्रति हेक्टेयर जुताई एवं बुवाई का 25000 प्रति हेक्टेयर खर्च के हिसाब से 20000 किसानों का लगभग 50 करोड़ रुपये खर्च करवाया जाता है एवं उत्पादन के रूप में प्राप्त होने वाली 95000 प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 200 करोड़ रुपये आय का नुकसान भी हो रहा है। किसान बार-बार ठेकेदार विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारियों के पास जा जाकर सीएम हेल्पलाइन लगाकर जनसुनवाई में जा जाकर हल नहीं पाकर आत्महत्या के लिए मजबूर हो चुका है किसान नेता एवं प्रबुद्ध किसानों द्वारा तत्कालीन कलेक्टर अमनवीर सिंह बैस से लगभग 7 से 8 बार ज्ञापन एवं मौखिक निवेदन के बाद भी कोई कार्यवाही एवं सुधार नहीं करवा पाए हैं। वर्तमान कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी के पास भी चार से पांच बार ज्ञापन एवं निवेदन के उपरांत भी समस्या जस की तस बनी हुई है एवं आगामी वर्ष में भी लगभग किसानों द्वारा दिए गए 2300 आवेदनों का आज तक भी निराकरण नहीं हुआ है। परियोजना की उच्च स्तरीय जांच के संबंध में प्रमुख अभियंता प्रमुख सचिव एवं जल संसाधन मंत्री भोपाल से भी निवेदन किसान नेताओं द्वारा किया गया है किंतु किसी भी अधिकारी ने योजना के सुधार एवं विकास की कोई ठोस पहल नहीं की है जिससे उक्त 42 ग्राम के 20000 हेक्टेयर के 20000 कृषकों में गहरा असंतोष एवं रोष व्याप्त है। किसान करो या मरो की तर्ज पर आंदोलन की स्थिति में शांतिप्रिय टापू जिला बारूद के ढेर पर खड़ा महसूस होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि योजना के ठेकेदार के बड़े अधिकारी एवं मंत्रियों से संबंध होने के कारण योजना की कमी एवं कई खामियां होने के कारण भी दोषी विभागीय अधिकारियों को पुरस्कृत कर सुरक्षा कवच प्रदान किया जा रहा है जिससे जिले की शांति भंग होने का अंदेशा है। कतिपय किसान नेता अब न्याय हेतु ऐसी स्थिति में हाई कोर्ट की शरण लेने को तैयार है या मजबूर हैं। उक्त योजना में उक्त समस्याओं को जिन-जिन अधिकारियों ने उच्च अधिकारियों एवं ठेकेदार के पास उठाने का प्रयास किया है, उनको तरह-तरह से प्रताड़ित कर स्थानांतरित कर दिया गया है जिसका प्रमुख उदाहरण अरविंद यादव अनुविभागीय अधिकारी एवं मनोज चौहान अनुविभागीय अधिकारी का उदाहरण है।