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छठ पूजा: आस्था, अनुशासन और प्रकृति के प्रति समर्पण का पर्व : आलोक कुमार उपाध्याय

छठ पूजा: आस्था, अनुशासन और प्रकृति के प्रति समर्पण का पर्व : आलोक कुमार उपाध्याय

कैमूर/बिहार

ब्यूरो चीफ, सत्यम कुमार उपाध्याय सत्यार्थ न्यूज

कैमूर। खबर कैमूर जिला का है। जहां कैमूर के रहने वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में जर्मन भाषा पर रिसर्च करने वाले आलोक कुमार उपाध्याय ने बताया कि भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में छठ पूजा का स्थान अत्यंत पवित्र और विशिष्ट है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का जीवंत उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। छठ पूजा मुख्यतः बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े हर्ष और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है, परंतु आज इसका विस्तार पूरे भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक हो चुका है। प्रवासी भारतीय जहाँ भी बसे हैं, वहाँ छठ का उल्लास और श्रद्धा का वातावरण अवश्य दिखाई देता है।

छठ पूजा सूर्य देव और छठी मइया की आराधना का पर्व है। सूर्य को जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य का स्रोत माना गया है, जबकि छठी मइया को संतान, परिवार और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक चलने वाला यह पर्व चार दिनों की कठिन साधना और अनुशासन का प्रतीक है। इसकी शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, जब व्रती शुद्धता के साथ स्नान कर सात्विक भोजन करते हैं। इसके बाद ‘खरना’ आता है, जिसमें व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़ की खीर, रोटी और फल का प्रसाद ग्रहण करते हैं। अगले दिन संध्या के समय व्रती घाटों पर जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं, और अंतिम दिन प्रातः कालीन सूर्य को उदीयमान अर्घ्य देकर व्रत का समापन करते हैं। यह दृश्य अद्भुत, भावनात्मक और आस्था से भरा होता है, जब हजारों लोग नदी के तट पर एक साथ सूर्य को नमन करते हैं।

छठ पूजा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी शुचिता, सात्विकता और आत्मसंयम में निहित है। इस व्रत में किसी प्रकार का दिखावा या भोग-विलास नहीं होता। व्रती पूरे समर्पण और निष्ठा के साथ व्रत करते हैं, न केवल अपने परिवार के कल्याण के लिए, बल्कि समाज और संपूर्ण मानवता की मंगलकामना के लिए। यह व्रत भारतीय स्त्री की श्रद्धा, सहनशीलता और तपस्या का जीवंत प्रतीक है। कहा जाता है कि छठ का व्रत करने वाली स्त्री सूर्य की तरह उज्ज्वल और छठी मइया की तरह करुणामयी होती है।

यह पर्व प्रकृति के साथ मनुष्य के सह-अस्तित्व की भावना को भी प्रकट करता है। सूर्य, जल, वायु और भूमि — इन चारों तत्वों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि जीवन का आधार इन्हीं तत्वों पर टिका है। छठ पूजा के अवसर पर नदी-तालाबों की सफाई, घाटों की मरम्मत और पर्यावरण की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस प्रकार यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता के संदेश को भी गहराई से स्थापित करता है।

छठ पूजा भारतीय लोकजीवन की एकता, समरसता और सामाजिक मेल-जोल का भी प्रतीक है। इस दिन अमीर-गरीब, उच्च-नीच, ग्रामीण-शहरी सभी भेदभाव मिट जाते हैं। सब लोग एक ही भाव से सूर्य को अर्घ्य देने घाटों पर एकत्र होते हैं। कहीं कोई भेद नहीं होता, केवल आस्था, भक्ति और भाईचारे की भावना होती है। लोकगीतों की मधुर ध्वनियाँ वातावरण में गूँजती हैं — “केलवा जे फरेला घोघा में…” जैसे गीत लोगों के मन को भक्ति और प्रेम से भर देते हैं। इन गीतों में मातृत्व, भक्ति और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता की भावना झलकती है।

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह जीवन के प्रति एक दर्शन है — अनुशासन, संयम और समर्पण का दर्शन। यह पर्व सिखाता है कि सच्ची भक्ति बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और निस्वार्थ आचरण में निहित है। जब मनुष्य प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करता है, तो वह अपने अस्तित्व की जड़ों को पहचानता है। छठ पूजा उसी आत्मबोध की प्रेरणा देती है।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि छठ पूजा भारतीय संस्कृति की आत्मा है — एक ऐसा पर्व जो आस्था, तपस्या, पर्यावरण और सामाजिक एकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। यह हमें सिखाता है कि जीवन को सुंदर और संतुलित बनाने का मार्ग प्रकृति और सत्य के प्रति कृतज्ञता में निहित है। छठ पूजा हर वर्ष हमें यही स्मरण कराती है कि जब हम प्रकृति, परिवार और समाज के प्रति सच्चे भाव से जुड़ते हैं, तभी जीवन में प्रकाश और शांति का उदय होता है।

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