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बैग का बोझ उठाना मुश्किल, सभी कॉपी-किताबें लेकर जाना पड़ रहा स्कूल

बैग का बोझ उठाना मुश्किल, सभी कॉपी-किताबें लेकर जाना पड़ रहा स्कूल

स्कूलों में बस्ता प्रबंधन नियम नहीं लागू, ये भारी बोझ नहीं उठता मैम

संवाददाता कृष्ण कुमार भार्गव बरेली

रायसेन/मासूम स्कूली बच्चों के कंधों पर बस्तों का बोझ उनकी सेहत को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। स्कूल के टीचर रोजाना कॉपी किताबें लाने का प्रेशर बनाते हैं। आलम यह है कि बस्तों के भारी भरकम बोझ की वजह से कंधों और कमर को नुकसान पहुंच रहा है।

7 से 10 किलोग्राम का बैंग टांगे बच्चे इन दिनों हलाकान देखे जा रहे हैं। उनसे बैग उठ नहीं रहा हैं, फिर भी स्कूल ले जाना उनकी मजबूरी है। क्योंकि, मैम ने कहा कि पूरी पुस्तक, कॉपियां लेकर आना हैं। कभी भी कुछ पढ़ाया जा सकता है। ऐसे में बच्चे यही गुहार लगाते नजर आ रहे हैं कि ये बोझ नहीं उठता, कुछ कम दीजिए न मैम।

ऐसा नहीं है कि रायसेन जिले में बस्ते के बोझ को कम करने का काम नहीं किया गया है, लेकिन अब भी जितनी किताबें और कॉपियां बच्चों के पास हैं, वह तय मानक से काफी अधिक है। ऐसे में बच्चे परेशान है। इस स्थिति में सबसे ज्यादा जरूरी पैरेंट्स ऑडिट हो सकती है, जो बच्चों के बैग्स को नियमित चैक करें। उनका वजन लें और शेड्यूल के बारे में स्कूल प्रबंधन से चर्चा करें, जिससे कि बच्चों को राहत मिल सके।

◆ कधे और कमर के लिए काफी नुकसान

किस कक्षा में कितना वजन मान्य

1.6-2.2 किग्रा पहली व दूसरी
1.7-2.5 किग्रा तीसरी से पांचवी
2.3 किलोग्राम
छठवीं व सातवीं
2.5 से 4 किग्रा आठवीं व नौंवी
2.5 से 4.5 किग्रा कक्षा दसवीं
शिकायतों पर कड़ाई से नहीं हो पाता पालन

राज्य शासन ने बैग का वजन किया था निर्धारित

राज्य शासन ने 2019 में प्राथमिक कक्षाओं से लेकर कक्षा 10 तक के बच्चों के बस्ते का वजन निर्धारित किया था। लेकिन निजी स्कूल संचालक इन नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। दिन के हिसाब से विषयों का चयन कर शेड्यूल बनाकर पढ़ाई करवाते हैं। जिससे मजबूरन सभी कापियां किताबें बच्चों को बस्ते में भरकर रोजाना ले जाना पड़ रही है। गाइडलाइन के मुताबिक कुछ क्लासों में बच्चों को बिना किताबें कक्षाएँ आयोजित करने के आदेश है, ताकि बच्चों का बोझ कम किया जा सके। लेकिन इन दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।

हर साल बच्चों के स्कूल बैग का वजन कम करने खूब डोल पीटे जाते है, लेकिन इस मुद्दे पर नियम और आदेशों का पालन नहीं होता। अकसर यह होता है कि स्कूल खुलने के बाद मानव अधिकार आयोग सहित शासन प्रशासन के पास बस्ते के वजन कम करने की शिकायतें तो पहुंचती है, लेकिन उन पर कड़ाई से पालन नहीं हो पाता।

टेढ़ी हो रही बच्चों की रीढ़ की हड्डी

बच्चों पर बस्ते बढ़ता बोझ का बढ़ता उनकी सेहत के लिए काफी नुकसानदायक है। इसका सीधा असर बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है। इससे कंधा, गला, सर्वाइकल, रीढ़, पीठ, कमर जैसी समस्याओं से आगे बच्चों को जूझना पड़ सकता है। इसके अलावा मानसिक तनाव भी बच्चे महसूस कर रहे हैं। बच्चों को भारी बस्ता ढोने के कारण उनकी लंबाई पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जबकि स्कूलों को स्पष्ट निर्देश दिए गए है कि गाइड लाइन के अनुसार ही बस्ता प्रबंधन कराएं। जिन स्कूलों में वजन अधिक मिला तो कार्रवाई होगी।-डॉ आलोक राय, शिशु रोग विशेषज्ञ

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