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गौरवशाली इतिहास, संघर्ष और स्वाभिमान का मिसाल है बड़हिया

रिपोर्टर- मुरारी कुमार
 लखीसराय बिहार

गौरवशाली इतिहास, संघर्ष और स्वाभिमान का मिसाल है बड़हिया

शक्ति, संयम और स्वाभिमान की भूमि से चरितार्थ बड़हिया नगर का आज 05 जून को स्थापना दिवस है। राजकीय संचिकाओं में इस नगर को अधिसूचित रूप में घोषित हुए आज 72 वर्ष पूरे हो गए। हालांकि गंगा नदी के पावन तट पर अवस्थित इस नगर का इतिहास काफी पुराना और गौरवशाली रहा है। देश के स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भी यहां की शैक्षणिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं अन्य प्रान्तों के लिए अनुकरणीय रहे हैं। स्वाभिमान से लबरेज बड़हिया का इतिहास हमेशा से ही हर क्षेत्र में नेतृत्व करने वाला रहा है। सैकड़ो वर्ष पूर्व 12वीं शताब्दी में रहे पाल वंश के शासन काल से ही बड़हिया नगर की चर्चाएं खास रही है।
शक्ति, संयम और स्वाभिमान की भूमि से चरितार्थ बड़हिया नगर का आज 05 जून को स्थापना दिवस है। राजकीय संचिकाओं में इस नगर को अधिसूचित रूप में घोषित हुए आज 72 वर्ष पूरे हो गए। हालांकि गंगा नदी के पावन तट पर अवस्थित इस नगर का इतिहास काफी पुराना और गौरवशाली रहा है। देश के स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भी यहां की शैक्षणिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं अन्य प्रान्तों के लिए अनुकरणीय रहे हैं। स्वाभिमान से लबरेज बड़हिया का इतिहास हमेशा से ही हर क्षेत्र में नेतृत्व करने वाला रहा है। सैकड़ो वर्ष पूर्व 12वीं शताब्दी में रहे पाल वंश के शासन काल से ही बड़हिया नगर की चर्चाएं खास रही है।

जबकि सरकारी संचिकाओं में इसे 05 जून 1953 को अधिसूचित क्षेत्र के रूप में स्थान दिया गया है। कहने वाले प्रबुद्ध व वृद्ध जन तथ्यों के साथ कहते हैं कि वर्ष 1936 से पहले ही यूनियन बोर्ड को गठित कर चुके इस नगर की चर्चा कभी लंदन में हुआ करती थी। जिसका कारण परतंत्र देश और ब्रिटिश शासन काल के दौरान भी यहां के लोगों का अपना स्वाभिमान प्रबल रहा है। गुलाम देश में रहते हुए भी बड़हिया नगर के लोगों ने कभी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की। यहां के मेहनतकश लोगों ने न सिर्फ अपने बल बूते अपनी जिजीविषा को बनाये रखा, बल्कि देश की स्वतंत्रता के आंदोलन में भी अपनी सर्वस्व हिस्सेदारी दी है। कालांतर में कृषि व पशुपालन कार्यो से जुड़े यहाँ के लोगों ने समय के साथ हर क्षेत्रों में अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है। देश से विदेश तक में शिक्षा, शासन, रक्षा, खेल, चिकित्सा, राजनीति समेत लगभग सभी क्षेत्रों में यहां के कौशल और ख्याति की अपनी विशिष्ट पहचान है। हालांकि तमाम क्षमताओं के बावजूद भी यह क्षेत्र अपेक्षाकृत उपलब्धियों से वंचित ही है। पटना, बेगूसराय और लखीसराय जिले के केंद्र में अवस्थित यह नगर पहले मुंगेर जिले का हिस्सा था। उपलब्ध संचिकाएँ बताती है कि वर्ष 1936 में यहां के लोगों ने यूनियन बोर्ड के गठन को लेकर सर गणेश दत्त को मांग पत्र सौंपा था। इसी वर्ष सार्वजनिक सभा कर बोर्ड गठन का निर्णय लिया गया था। जिसके बाद ही तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के शासन काल में राज्यपाल द्वारा 05 जून 1953 को बड़हिया को अधिसूचित क्षेत्र के रूप में कलमबद्ध करते हुए स्थान दिया गया था। जानकार बताते हैं कि शुरुआती दौर में यह नगर अधिसूचित समिति के अंतर्गत आती थी। जिसमें कुल 9 वार्ड थे। जिसके अध्यक्ष जिला के पदेन एसडीओ हुआ करते थे। समिति में शामिल सदस्यो (गांव के प्रबुद्ध गणमान्य) द्वारा ही मुख्य सदस्य का चयन किया जाता था। जो प्रायः उपाध्यक्ष व बोलचाल में अध्यक्ष कहे जाते थे। इस दौरान वार्डो के लिए पार्षद नहीं होते थे। समय के साथ 15 अगस्त 1972 को राज्यपाल द्वारा नगर को नगरपालिका का दर्जा मिला। इस दौरान वार्डो की संख्या 9 से बढ़कर 14 हो गई। वर्ष 1974-75 में चुनाव हुए। भोला सिंह अध्यक्ष और श्यामसुंदर सिंह उपाध्यक्ष के रूप में चुने गए। फिर अगले 22 वर्षों तक चुनाव ही नहीं हुआ। अगला चुनाव 2002 में ही हो सका। इससे पूर्व संविधान के 74वें संशोधन के नई नियमावली के तहत 30 अगस्त 2001 को बड़हिया को नगरपालिका से नगर पंचायत का दर्जा मिल गया था। इस दौरान कुल 18 वार्ड थे। जबकि 2017 के हुए चुनाव में बड़हिया 24 वार्डो वाला नगर पंचायत था। जो बिहार का सबसे बड़ा नगर पंचायत था। जिसके बाद 28 दिसंबर 2021 को बड़हिया नगर पंचायत को नगर परिषद में प्रोन्नत किया गया। हालांकि बड़हिया नगर परिषद के रूप में प्रोन्नति पाने का हकदार वर्ष 2011 के हुए जनगणना बाद से प्राप्त कर लिया था। परंतु कतिपय कारणों में शामिल लेटलतीफी और अधिकारियों की उदासीनता से हुए विलंब बाद 2021 के आखिरी दिनों में इसे यह उपलब्धि हासिल हुई। इस नए उपलब्धि बाद समय के साथ काफी कुछ परिवर्तन हुए। नए परिसीमन तैयार किये गए और नगर अंतर्गत 26 वार्डों ने अपना आकार ले लिया। वर्ष 2023 में पहली बार नगर परिषद के रूप में बड़हिया अन्तर्गत नगर निकाय के चुनाव हुए। जिसमें सभापति और उप सभापति का चयन सीधे तौर पर जनता के द्वारा मतदान के माध्यम से किया गया। जबकि इससे पूर्व मुख्य व उप मुख्य पार्षद का चयन पार्षदों द्वारा किये जाते थे। 2002 में अध्यक्ष रूपम देवी रही। 2007 से 2017 तक लगातार दो बार अध्यक्ष बसंती देवी रही। 2017 में अध्यक्ष पद पर मंजू देवी रही। जबकि एक वर्ष के विलंब के साथ 2023 में हुए नगर निकाय के चुनाव से वर्तमान तक नगर सभापति डेजी कुमारी और उप सभापति गौरव कुमार हैं। बड़ी बात यह कि नगर पालिका से नगर परिषद तक के इस सफर में नागरिकों की आबादी जरूर बढ़ी, परंतु नगर की चौहद्दी में कोई बदलाव नहीं हो सका है। बड़हिया का पौराणिक इतिहास यहां विराजित बाल स्वरूपा मां बाला त्रिपुर सुंदरी मंदिर के ही इर्द गिर्द घूमता प्रतीत होता है। जो आस्था का अद्भत केंद्र है। कथा मिलती है कि इस नगर की स्थापना दरभंगा के संदलपुर से आने वाले दो सहोदर भाई जयजय ठाकुर और पृथु ठाकुर के द्वारा की गई है। यह दोनों मैथिल भाई बड़हिया के रास्ते जगन्नाथपुरी (चारधाम) की यात्रा पर थे। इस दौरान उन्होंने इस साहसिक और शक्तिपूर्ण भूमि से अवगत हुए। जिसकी प्राप्ति को लेकर इस भूखंड के स्वामी व पालवंश के राजा श्री इंद्रदमणेश्वर पाल से उन्होंने संपर्क किया। जिनके द्वारा यह भूमि दोनो भाइयों को दान स्वरुप में प्राप्त हुई थी। उस दौरान यह क्षेत्र किसी घने जंगल के रूप में था। जहां लकड़ियों के काम करने वाले विरादरी बढ़ई जाति के लोगों का रहना सहना होता था। जिन्होंने अपने नाम से ही क्षेत्र को पहचाने जाने की इच्छा जाहिर की। जिसके अनुरूप प्रारंभ में यह क्षेत्र बढ़ई, फिर बड़ही और कालांतर में बड़हिया के नाम से जाना जाने लगा।

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