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लिखमादेसर में तिवाड़ी परिवार द्वारा आयोजित शिव महापुराण कथा पांचवें दिन,कुमार खण्ड वर्णन कार्तिकेय जन्म, तारकासुर वध एवं गणेश चरित्र के प्रसंग का वर्णन देखें फोटो वीडियो सहित खबर

सत्यार्थ न्यूज श्रीडूंगरगढ़- सवांददाता मीडिया प्रभारी

क्षेत्र के गांव लिखमादेसर में जगदीश प्रसाद पुत्र जयचंद राम तिवाड़ी परिवार द्वारा आयोजित शिव महापुराण कथा के आयोजन में पांचवें दिन बुधवार को शिव महापुराण कथा में बताया कि कुमार कार्तिकेय का जन्म,तारकासुर का वध व गणेश जी की उत्पत्ति आदि का वर्णन किया। शिवेन्द्राश्रमजी महाराज ने कहा कि श्री शिवमहापुराण कथा में कार्तिक स्वामी का जन्म एक विचित्र ढंग से दर्शाया गया और कार्तिकेय जी ने तारकासुर का वध करने के लिए ही जन्म लिया था। इसके अलावा उन्होंने इस कथा के माध्यम से गणेश महाराज जी की उत्पत्ति का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। शिवेन्द्राश्रमजी महाराज ने बताया कि भगवान शंकर और माता पार्वती के मांगलिक मिलन को कई वर्ष बीत गए। लेकिन संतान की प्राप्ति नहीं हुई। देवता विचलित हो गए थे। उनको लगा कि भोले बाबा तो वास्तव में भोले हैं, संन्यासी हैं। वह मांगलिक मिलन नहीं करेंगे। जब वे ऐसा करेंगे ही नहीं, तो पुत्र की प्राप्ति कैसे होगी। कैसे तारकासुर का वध होग। देवता स्तुति करने लगे। तप करने लगे। लेकिन भगवान शंकर और पार्वती जी को कोई संतान नहीं हुई। बताते चलें, कि एक तारकासुर नामक असुर था। उसने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया कि उसकी मृत्यु यदि हो तो शंकर जी के शुक्र से उत्पन्न पुत्र द्वारा ही हो अन्यथा नहीं। बहुत चालाक था तारकासुर। उसने सोचा, न शंकर जी विवाह करेंगे, न उनके संतान होगी और न उसका वध होगा। इस तरह वह तो अजर और अमर हो जाएगा। उसको क्या पता था कि उसके काल का निर्धारण तो पहले ही हो चुका है।भगवान शंकर और पार्वती के मांगलिक मिलन के बाद भी जब कोई संतान नहीं हुई तो सब विचलित हो गए। सर्वाधिक परेशान तो इंद्र थे। जो तारकासुर से पीड़ित थे। कथा आती है कि शंकर जी के शुक्र से कार्तिकेय का जन्म हुआ। लेकिन पार्वती जी उनकी धर्ममाता थीं। सबने मिलकर बालक का नाम कार्तिकेय रखा। कार्तिकेय अतुलित बलशाली थे। उन्होंने छह मुखों से स्तनपान किया। देवता बार-बार शंकरजी से आराधना कर रहे थे कि तारकासुर के वध के लिए कार्तिकेय जी को कहिए। आखिरकार समय आया और कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया। तारकासुर के वध के साथ ही दो बातें पूरी हुईं। यह सही है कि कार्तिकेय भगवान शंकर जी के शुक्र से उत्पन्न हुए लेकिन शंकर जी ने अपना तपस्वी रूप नहीं त्यागा। वह निर्विकार, निर्लिप्त और काम से दूर रहे। दूसरे, तारकासुर के वध से यह बात सिद्ध हुई कि कोई कितना ही प्रयास क्यों न करे, मौत अपना रास्ता बना ही लेती है। तारकासुर को क्या पता था कि शंकर जी के पुत्र होगा? यह पुत्र ही उनका वध करेगा। उसने तो बहुत सोच विचारकर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था। चतुर था। शैतान था। शैतान का दिमाग ज्यादा तेज चलता है। अंततोगत्वा, भगवान शंकर के पुत्र हुआ। कार्तिकेय जी ने तारकासुर का वध करके देवताओं को भयमुक्त कर दिया। कथा के पांचवें दिन बड़ी सँख्या में आस-पास से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।

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